Book Title: Anekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 113
________________ अनेकान्त/23 ने अपने मित्र को तापस-चर्या की व्यर्थता के बारे मे बहुत समझाया। इस पर दोनो ने यह स्वर्गस्थ देव ने अपने मित्र को तापस-चर्या की व्यर्थता के बारे मे बहुत समझाया। इस पर दोनों ने यह निश्चय किया कि वे पृथ्वी पर जाकर इस बात का निर्णय करेगे। इसलिए वे चिड़ा और चिडी का रूप धारण कर जमदग्नि की दाढी और मूछ मे रहने लगे। चिडारूपधारी देव ने चिडी से कहा कि मै कुछ देर के लिए दूसरे वन में जाता है, तब तक तुम मेरी प्रतीक्षा करना। चिडी ने उससे सौंगध खाने को कहा। तब चिडा ने कहा कि यदि मैं वापस न आऊ, तो मेरी गति तापस जैसी ही हो। यह सुन जमदग्नि क्रोध मे लाल हो उठे और अपना हाथ उन दोनों को मारने के लिए उठाया। तब चिडा ने अन्य बातो के साथ ही उनसे कहा कि आप कुमारकाल से ही ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे है । ऐसा करना सतान का घात है। क्या आपने नहीं सुना कि पुत्र के बिना मनुष्य की कोई गति नही होती? यह सुनकर जमदग्नि ने स्त्री मे आसक्ति व्यक्त की और ये दोनो मेरा उपकार करने वाले है यह सोचकर चिडा और चिडिया को मुक्त कर दिया। उसके बाद जमदग्नि अपने मामा राजा पारत के यहां गए। मामा ने कहा कि मेरी सौ पुत्रियो में से जो आपको पसद करेगी, उससे मे आपका विवाह कर दूंगा। किन्तु तप से कृश जमदग्नि को किसी ने भी पसद नही किया। अत मे जमदग्नि धुल में खेल रही एक बालिका के पास गए। बालिका के हा कहने पर जमदग्नि वन की ओर चले तथा बालिका का नाम रेणुकी रख कर उससे विवाह कर लिया। तभी से यह प्रथा चली कि स्त्री के साथ रह कर तप करना ही धर्म है। उनके दो पुत्र हुए। एक का नाम था इन्द्र और दूसरे का श्वेतराम । कालातर में रेणुका के बड़े भाई अरिंजय नामक मुनि रेणुकी को देखने आए। रेणुकी के कारण पूछने पर उन्होने बताया कि उसके विवाह के समय उन्होंने कुछ भी नही दिया था और अब वे उसे अमूल्य धर्मोपदेश दे रहे है। उसके अतिरिक्त उन्होने मनोवाछित फल देने वाली कामधेनू नामक विद्या और एक मत्रित फरशा भी अपनी बहिन को दिया। कामधेन्वमिधा विद्यामीप्सितार्थप्रदायिनीम। तस्यै विश्राणयान्वक्रे समन्त्रं परशु सः ।। 56-981। एक दिन राजा सहस्रबाहु अपने पुत्र कृतवीर के साथ उस तपोवन मे आया। भाई होने के कारण जमदग्नि ने उन दोनो को भोजन कराया। भोजन के उपरात कृतवीर ने अपनी छोटी मौसी से पूछा कि राजाओ के यहां भी दुर्लभ भोजन-सामग्री आपको कैसे प्राप्त होती है? इस पर रेणुका ने कामधेनु विद्या की प्राप्ति की बात उसे बताई। इस पर कृतवीर ने वह कामधेनु विद्या रेणुका से मागी और उसके मना करने पर उससे कहा कि ससार में जो श्रेष्ट धन होता है, वह राजाओ के योग्य होता है न कि फल खाने वाले लोगों के लिए। ऐसा कह कर वह कामधेनू को जबर्दस्ती ले जानेलगा। तब जमदग्नि उसे रोकने के लिए सामने खडे हो गए। इससे क्रुद्ध होकर कृतवीर्य ने जमदग्नि का वध कर डाला। जब

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