Book Title: Anekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 121
________________ अनेकान्त/31 प्राकृत वैद्यक : हरिवालकृत पौष सुदी अष्टमी सं. 1341 णमिऊण जिणो बिज्जो भवभमणे वाहि फेडण समत्थे। पुणु बिज्जयं पयासमि जं भणियं पुव्व सूरीहि ।। 1।। गाहा बधे विरयमि दे हीण रोय पासणं परमं । हरिवालो जं बुल्लइ तं सिज्झइ गुरु पयासण ।। 2 ।। वाडब गुरु जावत्ती तजिय सु अहि कुसुम सम उण्ह जले । पय कंकोलि णिवंसं णासे सिर वत्ति णासेइ ।। 3।। सक्कर कु कुम वंझा समभायं पयह स युया पयह । तो ए खीर समाण णासे पाणेण पिभूती।। 4।। अइ दारूण सिररोया हणुथं भं को ढ रोय णासे इ। अवरे वि उद्ध दोसा हरइ जहा तमभर रविणा ।। 511 रवि खीरेणयमासा भावण सत्ताइ देवि सुक्कविया । पुणु दट्ठामसि कित्ता कडुतई ले मत्थय भरह ।। 6 ।। णास ति सयल रोया चामाद य फो डया चे व । खंभाई जे हु सज्झा मत्थस्सय णत्थि सदेहो।। 7।। आवलय फल किरवाल र स सुपवाउ बीयाइ । लक्खा चुण्ण सीसे लिविदा दारूणरोया पणासेई ।। 8।। वायबिडं गा पत्तय पिप्पलि म ढं सक क्डा सिंगी। रयणीवलाहा सिरले वि समत्थ दो सहर ।। 9।। विल्लगरूं जुणगुलिय विण? सीसो विलिबिथो वेह । हुं ति हुं वीयापिहया केसा अइ णिम्मला सब्बा ।। 10।। एरण्डस्सय मूल कं जिय पीसे विले विणे दिणे। प चाडहल अह कं जियपी से विले विणे दिणे। पंचाडहल अह कजिय लेवे सिरवत्ति णासेइ ।। 11।। भइले ण भिणधत्थ सुरदारो जालितं जि भरणे ण। णासेई सूलअवर सिपिसिमियं काणिज होई ।। 12 || रामठ सुंठी तुंवरू पडिकारि ससोलम सुपलं णीरं । चउपल से सं ...डए पचियं पिकसा रूयणासं ।। 13।। वसु जट्ठी अडबाह जलपल कढि यावि से सवत्ती। खलुगुण तइल पलुचिकसी रत्तंगी पचिय कणरुय णासं ।। 14 || मक्कव रस कइवाइं. यि खीरो वि तेल समएं च । सेस्स लोहल्लजहे पचिवो सुद्धो उ दुई लेह।। 15।। पासे रंतह कुट्ठ चुणं मिलिऊण सीस भरणे ण। तिमिरासण वायं वररूया सयल णासे ई।। 16 ।। क्रमशः - विश्वासनगर, शाहदरा दिल्ली।

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