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अनेकान्त/18 स्मरण रहे कि आ कुन्दकुन्द की कृति 'हिमालय मे दिगम्बर मुनि' जैसी कृति नही, जिसका चाहे जो सपादक बन बैठे और चाहे जो सर्वाधिकार सुरक्षित जैसी घोषणा कर दे । आचार्य कुन्दकुन्द तो आगम धुरधर ऐसे सपादक हैं जिनका स्थान अन्य नहीं ले सकता। वे राष्ट्र के प्राणभूत धर्म-सन्त थे। और ज्ञान चारित्र सत भी। क्या आपने देखा है?
उक्त पत्र में लिखा है
"प गजाधर जी द्वारा सपादित एव प्रकाशक नेमीचन्द महावीर प्रसाद पाण्डया द्वारा वी नि स 2468 मे कलकत्ता से प्रकाशित प्राचीन समयसार प्रतियो को क्या आपने देखा है? उन विद्वानों ने जो मूलपाठ रखे हैं, हमने वही लिए हैं। दोनो समयसारो का विवरण इस प्रकार है
1 समय प्राभृत (आ कुन्दकुन्द) संपादक पं0 गजाधरलाल जैन, सनातन जैन ग्रन्थ माला, बनारस, सन् 1914 में प्रकाशित, ___ 2 समय प्राभृत (आत्मख्याति सहित) आचार्य अमृतचन्द्र कृत सस्कृत टीका, ५ जयचन्द जी छाबडा हिन्दी टीका सहित । प्रकाशक श्री नेमीचन्द महावीर प्रसाद पाण्डया, कलकत्ता, वी निर्वाण सवत् 2468 में प्रकाशित ।"
हम स्पष्ट कर दें कि हमने किसी भी मूल प्रति के मूल पाठ लेने का सदा समर्थन किया है। ऐसे मे 'हमने मूल पाठ वही रखे है जैसी बात कहना इनका निष्फल प्रयास है। इन्हें तो यह बतलाना चाहिए था कि इन्होंने उक्त प्रतियों के या अन्य प्रतियों के जिन पाटों का बहिष्कार किया है वे मूलपाट कौन से हैं और बहिष्कार क्यो? मुन्नुडि से जब हमें पता चला कि इन्होने उचित पाठों को रखा। तब पढकर हमे ऐसा लगा कि इन्हे आगम में अनुचित पाठ भी दिखे, जिन्हें इन्होंने मूल पाठों से बहिष्कृत कर दिया । फलत. हमने अनेको प्रतियों को देखा। उक्त प्रतियों में से भी जो शब्द इन्होंने बहिष्कृत किए, उनकी कुछ तालिका इस भाति है। ऐसे मे तालिका देखकर ये ही बताएं कि इन्होंने उक्त प्रतियों को देखा है क्या? और यदि देखा है तो क्या इन प्रतियो मे इन्हे निम्न पाठ नहीं दिखे? जो उन प्रतियो का उदाहरण अपनी प्रकाशित प्रति की सफाई मे देने लगे। अस्तु । देखे इनकी बतलाई दोनो प्रतियों के (इनके द्वारा) बहिष्कृत शब्दरूप । तथाहिसमय प्राभृत (पं. गजाधर लाल) समय प्राभृत (कलकत्ता) वी.नि. 2468 -सन् 1914
(प्रकाशक : नेमीचन्द महावीर प्रसाद पाण्डया) पुग्गल · गाथा 2, 28, 29, 30, 33, गाथा 2, 25, 28, 44, 45, 55 49. 50. 60. 69. 71. 82.
(कर्ता कर्म अधिकार मे) 84, 85, 86, 88, 90, 91
• गाथा 10, 11, 12, 14, 17, 18. 20, 23, 92, 93, 95, 98, 111, 114. 118. 196. 302. 303. 314, आदि चुक्किज्ज · गाथा 5
गाथा 5