Book Title: Anekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 102
________________ अनेकान्त/12 दान और पूजा श्रावक के प्रमुख कर्तव्य है । इनको किये बिना श्रावक श्रावक कहलाने का अधिकारी नहीं होता है।40 उपर्युक्त आवश्यक कार्यों के किये विना व्यक्ति श्रावक कहलाने का भी अधिकारी नहीं होता है। इस कथन से स्पष्ट है कि श्रावक के आवश्यक कर्तव्यों को बतलाकर जैनाचार्यों ने शुभप्रवृत्ति को जागृत करने और नैतिकता के प्रचार करने में महान योगदान किया है। यदि श्रावक अपने कर्तव्यो का समुचित रुप से पालन करे तो उसे अन्य आश्रमो के धर्मों का पालन करने की आवश्यकता नहीं श्रावक या गृहस्थावस्था ही एक ऐसी अवस्था है जो स्वय धार्मिक नैतिक जीवनयापन करते हए दूसरो के कर्तव्य पालने में सहायता करता है। यही करण है कि धर्म निष्ठ और कर्तव्यनिष्ठ निर्मोही श्रावक को शिथिलमोही ऋषियों से भी अधिक पवित्र कहा गया है। कहा भी है “यद्यपि (शुद्धाचारण करने वाले) साधु समस्त गृहस्थों से सयम में उत्तम होते है, लेकिन शिथिलाचारी किसी भिक्षु की अपेक्षा गृहस्थ संयम में उत्तम होते हैं। पद्मनन्दि ने कहा भी हे-"जो रत्नत्रय समस्त देवेन्द्रो और असुरेन्द्रा से पूजित है मुक्ति का अद्वितीय कारण है, तथा तीनों लोको को प्रकाशित करने वाला है, उसे साधुजन शरीर के स्थित होने पर भी धारण करते है । उस शरीर की स्थिति उत्कृष्ट भक्ति से दिए गये जिन सदगृहस्थों के अन्न से रहती है उन गुणवान सद्गृहस्थों का धर्म किसे न प्रिय होगा। अर्थात् सब को प्रिय होगा।41 मनुस्मृति42 मे भी कहा है - "सर्वेषामपि चैतेणं वेदस्मृति विधानतः । गृहस्थ उच्यते श्रेष्ठतः स त्रीनतोन्विमर्ति हि।। यथा नदिनदा :सर्वे सागरेयन्ति संस्थितिम । तथैवाश्रमिणा : सर्वे गृहस्थे यान्ति संस्थितिम्।।" अर्थात ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वान प्रस्थ और यति इन आश्रमो से वेद शास्त्रानुसार गृहस्थ श्रेष्ठ है, क्योकि रोष तीनो का गृहस्थ ही पालन करता है। जिस प्रकार नदी नाले सब समुद्र मे जाकर स्थित रहते हैं उसी प्रकार सब आश्रम वाले गृहस्थ मे स्थित रहते है, (क्योकि मनुष्य की उत्पत्ति) तथा पालन गृहस्थ से ही होता है। अब जिज्ञासा होती है कि जब संयमी श्रावक शिथिलाचारी ऋषियो से भी अधिक पवित्र है तो क्या वह श्रावक धर्म का पालन करते हुए उसी भव मे दुख से छुटकारा पाकर मोक्ष प्राप्त करता है या नहीं? इसका समाधान भी श्रावकाचार मे किया गया है। मोक्ष पाहुड टीका43 मे कहा गया है कि उखली चक्की, चूल्हा, घडा और झाडू ये पचसूना दोष श्रावक मे पाए जाते है, इसलिए उनको उसी भव में मोक्ष नहीं मिलता है। किन्तु उत्तम प्रकार से अपने धर्म का पालन करने से देव-मनुष्यों के सुख को भोगता हुआ तीसरे पांचवे या आठवें भव में सिद्ध हो जाता है। आ वसुनन्दि एव प आशाधर ने भी ऐसा ही कहा है।45

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