Book Title: Anekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 27
________________ अनेकान्त/२२ गोम्मटेश के मस्तक पर छोड़ते ही समस्त मूर्ति के स्नान हो गये और सारी पहाड़ी पर दुग्ध बह निकला । उस वृद्धा स्त्री का नाम इस समय से “गुल्लिका वज्जि'' पड़ गया । इसके पश्चात चामुण्ड राय ने पहाडी के नीचे एक नगर बसाया । चामुण्डराय के गुरू अजित सेन ने गुल्लिकाय के दुग्ध से स्नान होने के कारण, उस नगर का नाम "बेलगोल'' रखा और उस “गुल्लिकाय वज्जि' स्त्री की मूर्ति स्थापित की गई । चामुण्ड राय गंग नरेश राचमल्ल के मंत्री थे । राचमल्ल के राज्य की अवधि सन् ९७४ से ९८४ तक बांधी गई है अत. गोमटेश्वर की स्थापना इसी समय के लगभग होना चाहिए । गोम्मटेश्वर की दोनो बाजओं पर यक्ष और यक्षिणी की मूर्तिया है । मूर्ति के बाई ओर एक गोल पाषाण का पात्र है जिसका नाम ललित सरोवर है । मूर्ति के अभिषेक का जल इसी मे एकत्रित होता है। इस पाषाण पात्र के भर जाने पर यह अभिषेक का जल एक प्रणाली द्वारा मूर्ति के सम्मुख एक कुएं में पहुंच जाता है और वहा से वह मटिर की सरहद के बाहर कन्दरा मे पहुँचा दिया जाता है । इस कन्दरा का नाम “गुल्लिकायज्जि वालिलु' है। शिलालेख नं०७४ (१८०) व ७६ (१७७) से विदित होता है कि गोम्मटेश्वर का परकोटा गंगराज ने निर्माण कराया । इस परकोटे के एक दरवाजे का नाम "गुल्लिकायज्जि वागिलु' है। गुल्लिका के कारण वृद्धा स्त्री का नाम “गुल्लिकायज्जि'' तथा उसकी मूर्ति, गुल्लिकायज्जि वागिलु कन्दरा, गुल्लिकायज्जिवाग्गिल दरवाजा होने से यह स्थान गुल्लिकामय यानी एक गुल्लिका नगर जैसा हो जाने से प्रशंसा रूप मे गोल्लादेश की संज्ञा दिया जाना प्रतीत होता है। और इस स्थान का कोई विशिष्ठ व्यक्ति जिनटीक्षा धारण करने पर गोल्लाचार्य विशेषण से प्रसिद्ध हो जाना प्रतीत होता है । स्पष्ट रूप से तो नही, पर संभावना यह होती है कि इसी गोलादेश के निकट रहने वाले गोलालारे नाम से प्रसिद्ध हुए हो और यहाँ से गंगवंश के राजा शक्ति क्षीण होने पर भिण्ड इटावा की ओर आ गये हों । क्योकि राजमल्ल राज नरेश के पश्चात गंगवंश राज्य का अंत चोलो के आक्रमण के कारण समाप्त हो गया । और यह भी सभव है कि श्रवण वेलगोल के परकोटे को गोलाकोट या गोयलगढ़ नाम दिया है । क्योंकि बाहुबलि ऋषभदेव के पुत्र थे । इसी बात को ध्यान में रखते हुए नवलशाह चन्दौरिया ने अपने वर्षमान पुराण में लिखा है । कि आदीश्वर जिनेश के उपदेश से गोयलगढ के पूर्व के निवासी जैन धर्मानुयायी हुए और गोला पूरव कहलाये । इस पकार गोल मरोवर के लोग गोल श्रगार गोलादेश के निकट के लोग गोलालारे अथवा गोलादेश/गोलाराड कं निवासी गोलाराड़ गोला कोट या गायलगढ के पूर्व के लोग गोलापूरव कहलाये है।

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