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अनेकान्त/5
अरहत. अरिहंत और अरूहत तीनों पाठों का सबहुमान उल्लेख करते है। 'उच्चार्हति' ८/२/१११ सूत्र की स्वोपज्ञवृत्ति में वे लिखते हैं- अर्हत् शब्दे हकारात् प्राग् उदितावुद भवन्ति च । अरहो अरिहो रूपमरूहो चेति सिद्धयति । अरहतो, अरिहंतो, अरूहतो चेति पठ्यते। हाथीगुफा शिलालेख मे सिद्धाणं के स्थान पर सिधाण का प्रयोग भी अशुद्ध नही अपितु साभिप्राय है। सिद्धाणं के सि को सयुक्ताक्षर के पूर्व होने पर भी हस्व ही माना गया है, क्योकि यहां स्वराघात नहीं है | सिद्धाण के स्थान पर सिधाणं का लेखन उच्चारणगत भिन्नता दृष्टिगोचर होती है। ___आजकल कुछ लोगो ने आगमो की शुद्धि का एक अभियान सा चलारखा है तथा पश्चाद्वर्ती व्याकरणो के आधार पर कुन्दकुन्द आदि की भाषा को शौरसेनी प्राकृत जोर-शोर से घोषित किया जा रहा है। यह दिगम्बर परम्परा को पीछे ढकेलने वाला तथा आत्मघाती भी सिद्ध हो सकता है। जिस प्रकार पाणिनि आदि के लौकिक व्याकरणो को आधार बनाकर वैदिक संस्कृत के परम्परागत मूलपाठो मे परिवर्तन न करके उनकी पूर्ण सुरक्षा की गई है, उसी प्रकार दिगम्बर जैन आगमो की भाषा में भी व्याकरण को आधार बनाकर आम्नाय के मूल पाठो मे परिवर्तन करना हितकर नही आगमों मे आर्ष प्रयोगो की बहुलता होती है। अत उन्हे किसी एक प्राकृत का मानना ही समीचीन नहीं है। हमारी परम्परा तो मूल भाषा को 'दश अष्ट महाभाषा समेत, लघु भाषा सात शतक सुचेत' स्वीकार करती है | सुप्रसिद्ध प्राकृतवेत्ता पिशेल जैन आगमो मे शौरसेनी की बहुलता तथा अर्धमागधी आदि की प्रवृतियो के समावेश के आधार पर ही इसे जैन शौरसेनी जैरो पृथक् नाम से अभिहित करते हैं। यदि दिगम्बर परम्परा की मूल भाषा शौरसेनी स्वीकार कर ली जाय तो 'नमो' पाठ स्वीकार करना पडेगा, क्यो कि सौरसेनी मे तो आदि का न अपरिवर्तनीय रहता है। जबकि यह सुविदिततथ्य है कि दिगम्बर परम्परा णमो पाठ तथा श्वेताम्बर परम्परा नमो पाठ मानती है।
__ णमोकार मन्त्र मे पच परमेष्ठियो में सर्वप्रथम अरहतो को नमस्कार कियागया है, जो सर्वथा वैज्ञानिक है। क्योकि सिद्धो का ज्ञान हमे अरहंतो के माध्यम से ही होता है। धवला के आदि मे अरहन्तो को नमस्कार करने के जो कारण कहे गये है, वे इस प्रकार है१ अरहतो के द्वारा ही सिद्धों का श्रद्धान होता है। २ आप्त, आगम और पदार्थों का परिज्ञान अरहंतों के माध्यम से ही होता है। ३ अरहतों के प्रति शुभ पक्ष कल्याण का उत्पादक है। ४ इस मन्त्र में वस्तुत गुणी को नमस्कार न करके गुणों को नमस्कार किया
गया है और गुणों की अपेक्षा पाचो परमेष्ठी भिन्न नहीं है।