Book Title: Anekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 72
________________ अनेकान्त/30 केरल की ही सीमा में एक पहाडी चंद्रगिरी नाम की भी है। इन दोनों का नाम जैन सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य की स्मृति में रखा गया है जोकि मुनि हो गए थे। केरल की राजधानी त्रिवेद्रम एक पहाडी पर बसी हुई है और मनोरम दृश्य प्रस्तुत करती है। कालीकट से वायनाड तक की यात्रा का आनंद ही निराला है। वैसे सारा केरल ही आकर्षक दृश्य प्रस्तुत करता है। उसके समुद्रतट, हरी-भरी पर्वत-श्रेणियां, उन पर काजू, नारियल कालीमीर्च, इलायची आदि के वृक्ष उसे एक अनोखी हरीतिमा प्रदान करते हैं। किसी पर्यटक ने ठीक ही लिखा है कि जिस ईश्वर के हाथों ने केरल की रचना की, उसके साथ ही हरे थे। केरल में केवल प्रकृति ने ही विविधता की सृष्टि नहीं की है, अपितु वहां मानव वश की इतनी अधिक नस्ले पाई जाती है कि केरल को मानव वंशका एक संग्रहालय (thnolocical museusm) कहा जाता है। सबसे प्राचीन समझी जाने वाली नेग्रीटो नस्ल के लोग भी वहां है जो जंगलों में अपना आदिम जीवन व्यतीत कर रहे हैं। काडर, काणिक्कार, मलप्पंडारम, मुतुवर, उल्लाटन तथा ऊराळि आदि इसी प्रकार की जातिया हैं। नेग्रिटो लोगों के बाद आद्य-ऑस्ट्रोलाइड नसल के जन केरल में आए। इस प्रकार की जातियां हैंइसलन, करिम्पालन, केरिच्चियन मलय रयन और मल वेटन आदि। उनके बाद भूमध्यसागरीय जातियो ने भारत सहित केरल में प्रवेश किया। दक्षिण भारत में य द्रविड कहलाते है। केरल के नायर, ईजवन और वेळळाळ जाति के लोग इसी परिवार के हैं। इन जातियों के संबंध में योरपीय विद्वानों के अतिरिक्त श्री एल के अय्यर और ए के अय्यर नामक पिता-पुत्र ने बहुत महत्वपूर्ण कार्य किया है। केरल के विभिन्न जातियों के संबंध में लगभग आठ हजार पृष्ठों की सामग्री का अध्ययन करते-करते प्रस्तुत लेखक को ऐसा लगा कि केरल की जातियों विशेषकर आदिवासी और अस्पृष्य करार दी गई जातियों में जैन चिन्ह या जैन स्मृतियां शेष हैं। संभवतः राजनीतिक या धार्मिक कष्टो के दिनो में वे पर्वतों और घने जंगलों में भाग गए। इसकी चर्चा एक अलग अध्याय मे की गई है। सबसे बाद में आर्यो अथवा ब्राह्मण सभ्यता का केरल में प्रवेश हुआ यानी ईसा से दो-तीन सौ वर्ष पूर्व । कुछ विद्वानों का मत है कि जैनों और बौद्धों का आगमन केरल या दक्षिण भारत में आर्यो से भी पहले हो चुका था। केरल में जैनमतम् का इतिहास जानने के लिए प्राचीन औरआधुनिक केरल का सीमाओं का ज्ञान कर लेना आवश्यक है। आठवीं शताब्दी केरल तमिलगम् या तमिल देश का एक भाग था। उसकी भाषा भी तमिल थी- मलयालम उससे अलग नहीं हुई थी। तमिलगम् की सीमा इस प्रकार थी- उत्तर में तिरूपति पर्वत, दक्षिण में कन्याकुमारी और पूर्व तथा पश्चिम में समुद्र । आधुनिक केरल

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