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वर्ष ४८ किरण-४
अनेकान्त वीर सेवा मंदिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२ अक्टूबर-दिसम्बर
वि.नि.सं. २५२२ वि.सं. २०५२
१६६५
सम्बोधन कहा परदेसी को पतियारो।
मनमाने तब चलै पंथ को,
सॉ झिगिनै न सकारो। सबै कुटुम्ब छॉडि इतही, पुनि त्यागि चलै तन प्यारो।।
दूर दिसावर चलत आप ही,
कोउ न राखन हारो। कोऊ प्रीति करो किन कोटिक, अन्त हो इगो न्यारो।।
धन सौं रुचि धरम को भूलत,
झू लत मोह मॅ झारो। इहिविधि काल अनंत गमायो, पायो नहिं भव पारो।।
सॉचे सुख सो विमुख होत है,
भ्रम मदिरा मतवारो। चेतहु चेत सुनहु रे 'भैया' आपहि आप सँ भारो।।
कहा परदेसी को पतियारो।।