Book Title: Anekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
View full book text
________________
अनेकान्त/40
।।
८।।
।।
६।।
||
१०।।
।। ११।।
डिडीरा बलि चन्द्रमण्उल मिलन्मुक्ता कलापोज्जवलै स्त्रैलोक्य सकल यशोभिरचलै र्योजस्र मा पूरयत् यस्य प्रस्थानकालोत्थित जलधिरवाकार वादित्र, शब्दावेगान्निर्गच्छदद्रि प्रतिमगज घटा कोटि घटारवाश्च । ससर्पन्त समतादहमहमिकया पूरयतो विरेमु, । रोदा रध्र भाग गिरि विवरगुरू घत्प्रतिध्वान मिश्रा. दिक्चक्रा क्रम योग्य मार्गण गणाधाराननेकान् गुणान, च्छिन्नाननिश दर्धाद्वघुकला सस्पर्द्धमान धुतीन । सुनुच्छिन्न धनुर्गुण विजयिनोप्याजो विजोर्जित, जातो रमादभिमन्युरन्यनृपतीनाम मन्यमानस्तृणम् यस्सात्यदभुत वाहवाहन महाशस्त्र प्रयोगादिषु, प्रावीण्य प्रविकल्पित पृथुमति श्री भोज पृथ्वी भुजा । च्छत्रा लोकन मात्र जातभयतो दृप्तारिभगप्रद, स्यास्य रयादगुण वर्णने त्रिभुवने को लब्ध वर्ण प्रभु तुरगखर खुराग्रोत्खात धात्री समुत्थ, स्थगयदहिम रस्मे (श्मे) मंडल यत्प्रयाणे । प्रचुरतर रजोन्याशेषतेजस्विते जो हतिमचिरत एवा (श) सतीवानि वारम् शरदमत मयूख पे स्वदश प्रकाश, प्रसर दमितकीर्ति व्याप्त दिक्चक्रवाल । अजनिविजयपाल श्री मतीरभान्महीश, शमित सकल धात्री मडलक्लेश लेस (श) भय यच्छत्रूणा त्रिदशतरूणीवीक्षितरणे, क्रमेणाशेषाणा व्यतरदसदप्यात्मनि सदा। सतोप्य शन्नादादवनिवलयस्याधिकमतो, वु (बु) धानामाश्चर्य व्यतनुत नरेन्द्रो हृदिचय तरमादिक्रमकारि विक्रमभरप्रारभ निर्भेदित, प्रोतुगाखिल वैरिवारणघटेद्यन्मास कुभस्थल । श्री मान्विक्रमसिंह भूपतिरभू दन्वर्थनामा सम, सर्वासा (शा) प्रसरद्विभासुर यश स्फार स्फुरत्केसर वा (बा) लस्यापि विलोक्य यस्य परिधाकार भुज दक्षिण, क्षीणाशेष पराश्रय स्थिति धियावीरश्रिया सश्रितम् । सर्वागेष्वगृहनाग्रह महकारा दहपूर्विका, राज्य श्रीरकताधिगस्य विमुखी सर्वान्यप वर्गत अत्यतोदृप्त विद्वितिमिरभरभिदिच्छादितानीति,
।। १२।।
|| १३||
।। १४।।
।। १५ ।।
।। १६/

Page Navigation
1 ... 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125