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अनेकान्त/38 है जिनके सामूहिक सहयोग से यह ऐतिहासिक विशाल जिन मन्दिर का निर्माण हुआ था। पैतीसवे श्लोक मे इस ऐतिहासिक जिनालय का सौन्दर्य पूर्ण छटा का अलकारीक भाषा में वर्णन किया है। __ अत मे गद्य भाग दान पत्र के रूप मे उत्कीर्ण है। जिसमे राजा विक्रम सिह द्वारा घोषित विभिन्न दाना का विवरण है। सर्वप्रथम तो मन्दिर की पूजा अर्चा तथा भविष्य मे टूटफूट या जीर्णोद्धार हेतु महाचन्द्र नामक ग्राम दान मे दिया था। __ जिसमे चार गोणी गेहू बोने लायक खेत भी था। गोणी एक द्रोण के बराबर होता था और एक द्रोण ३२ सेर बराबर होता था इस तरह २८ सेर गेहू जिसमे बोया जा सके ऐसा विशाल खेत था। साथ ही एक गोणी अनाज पर एक विशेपक (तत्कालीन सिक्का या मुद्रा) कर के रूप मे भी निश्चित किया था। साथ ही रजक द्रह नामक विशाल सरोवर मदिर के लगा दिया था जिससे खेतो की सिचाई हो तथा और अन्य कार्यो मे प्रयोग में लाया जा सके। इसके अतिरिक्त पूर्व दिशा मे स्थित बगीचा और उसमे विद्यमान बावडी भी (नायिका) दान मे दी थी। मदिर मे आरती तथा रोशनी प्रकाशादि हेतु एव मुनिजनो एव साधु सघो के शरीर मर्दन मालिश आदिके लिए दो कर घटिका प्रमाण (एक प्रकारका माप) तैल भी दान मे दिया था(प्रदीप मुनिजन शरीर सभ्यजनार्थ का घटिका द्वय तैल दभवान्) इस उल्लेख से ज्ञात होता हे कि मुनि महाराजो मे तैल मालिश की प्रथा प्रचलित थी। जो आज के युग एक प्रश्न चिन्ह खडा कर देता है।
इस तरह उपर्युक्त सपूर्ण दान महाराज विक्रम सिह ने जब तक सूर्य चन्द्रमा रहे तब तक के लिए दिया तथा अनुरोध किया है कि भविष्य मे जो कोई शासक हो वह इस दान की रक्षा का पालन करता रहे । अतिम श्लोक मे लिखा है कि सगरादि बडे-बडे चक्रवर्ती राजा इस पृथ्वी पर शासन करते रहे और जिसने जितनी भूमि पाई उसने उतना ही उसका फल पाया अत इस वाक्य से अपन्न प्रयोजन सिद्ध करते हुए भावी शासक इस दान की रक्षा करते रहे।
इस प्रशस्ति को उदयराज ने लिखा तथा तिल्हण नामक शिल्पी ने उत्कीर्ण किया । सवत् ११४५ भाद्रपद शुक्ल तृतीया सोमवार सबको मगलमय हो।
श्रुति कुटीर ६८, विश्वास नगर
शाहदरा दिल्ली