Book Title: Anekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 78
________________ अनेकान्त/34 जाति के एक सदस्य ने बताया कि उसकी जाति पहिले जैन थी और जिसके आठ हजार सदस्यों को किसी समय ब्राह्मण बनाया गया था। यह एक रोचक बात है कि दक्षिण भारत की जातियों संबंधी एक अत्यंत प्रामाणिक ग्रंथ में ब्राह्मण जाति के विभिन्न भेदों का उत्पत्ति आदि का विवरण तो उपलब्ध है किंतु अष्टसहस्त्री ब्राह्मणों की उत्पत्ति के संबंध में यह ग्रंथ मौन है। इस लेखक ने विभिन्न जातियो और जनजातियो की उत्पत्ति संबंधी ब्रिटिश कालीन विवरणों को पढ कर अनेक जातियों में जैनत्व के संकेत पाए हैं जिसका उल्लेख उसने अपनी पुस्तक 'केरल में जैनमतम्' में एक स्वतंत्र अध्याय में किया है। पुरातत्व की दृष्टि से देखें तो लघु क्षेत्रफल वाले केरल मे वर्तमान में भी लगभग पचास जैन पूरावशेष मिलते हैं ऐसा कुछ अध्ययनो से ज्ञात होता है। यह तथ्य किसी समय केरल मे जैनो की बहुत बड़ी संख्या की ओर संकेत करता है। - बी 1/324, जनकपुरी नई दिल्ली-58 समता भाव समता भाव रहना ही परम तप है। ज्ञानी जीव समता भाव में सुखसागर को पाते हैं, उसी में मगन हो जो हैं, उसी के शान्तरस का पान करते हैं, उसी के निर्मल जल से कर्म-मल छुडाते हैं। समता भाव एक अपूर्व चन्द्रमा है, जिसके देखने से सदा ही सुखशान्ति मिलती है। समता भाव परम उज्जवल वस्त्र है, जिसको पहिनने से आत्मा की परम शोभा होती है। समताभाव | एक शीघ्रगामी जहाज है, जिस पर चढकर ज्ञानी भव सागर से पार हो जाते हैं। समता भाव रत्नत्रय की माला है, जिसको पहिनने से परमशांति मिलती है। समता भाव परमानन्दमयी अमृत का घर है, जिसमें भीतर से अमृतरस रहते हुए भी वह कभी कम नहीं होता है। जो समता भाव के स्वामी हैं वही परम तपस्वी हैं। वे शीघ्र स्वतंत्रता को पाकर परम सन्तोषी हो जाते हैं और तष्णा के आताप से रहित हो जाते हैं। - स्वतंत्रता सोपान, ( ब्र. शीतल प्रसाद जी)

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