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अनेकान्त/15
समकालीन अन्य ऐसे लेख-प्रलेखों की जिनमें उन जैसी ही भाषा का प्रयोग हुआ है, तुलनात्मक गवेषणा करके ही उनने नवीनतम निष्कर्ष स्थापित किया है।४
यद्यपि यह तो सही है कि संस्कृत से पहले जन भाषाए रही होंगी परन्तु यह भी सही लगता है कि वे भाषाएं वे प्राकृत नहीं थीं, न हो सकती थीं जिन्हे हम अब महाराष्ट्री शौरसेनी आदि प्राकृतों के नाम से पहचानते हैं। ___ अगर मूल शौरसेनी जो भारत के विस्तृत क्षेत्र में प्रचलित थी और उसे जैन शौरसेनी संज्ञा दी गई है, तो मै सोचता हूं कि यह एक अच्छी बात है ओर हमारे विद्वानों को तथ्य परक तुलनात्मक अध्ययन के द्वारा ऐसी मजबूती से यह साबित कर दिखाना चाहिए कि जिसे जैन शौरसैनी भाषा कहा जाता है वह भाषा ही सर्वत्र प्रचलित थी, मानों एक समय वही भारत की न सही, आर्यावर्त की 'निज भाषा' राष्ट्रभाषा थी, ताकि भाषा विज्ञान के क्षेत्र में इन नवीन विचारों को मान्यता मिल सके।५
सोचने की बात यह भी है कि यदि शौरसेनी ही सर्वत्र प्रचलित थी तो फिर महावीर के संदेश अर्धमागधी व शौरसेनी में तथा बुद्ध के पाली (मागधी) में यानि अलग अलग प्राकृतों मे क्यो दिए गए जबकि दोनो एक ही समय और प्रदेश में आम जनता को उसकी भाषा में (न कि संस्कृत में) अपना संदेश दे रहे थे।६
हमें यह भी ध्यान में रखना है कि जब कुन्दकुन्द साहित्य सर्जन कर रहे थे तब एक समानान्तर 'अणज्ज' भाषा भी प्रचलित थी जिसका ज्ञान भी 'अज्जो को' अणों को समझाने के लिए जरूरी था ७
किन्तु अभी तक जो कहा गया है वह यह है कि तीर्थकरो के संदेशों, आगमो व आचार्यों के लेख का माध्यम प्राकृत रही है, वैदिक साहित्य में प्राकृत के तत्व प्रचुरता से प्राप्त होते हैं, प्राय सभी लोक गीत प्राकृत के ही रहे हैं, अति प्राचीन काल से प्राय समस्त भारतवासी प्राकृत भाषा भाषी थे, सिधु सभ्यता की भाषा प्राकृत थी, अशोक, खारवेल और सातवाहन नरेशों के शिलालेखों की भाषा प्रायः शौरसेनी प्राकृत है और शौरसेनी प्राकृत शूरसेन जनपद की ही भाषा न थी किन्तु अफगानिस्तान से लेकर बर्मा और तिब्बत से लेकर श्रीलका मे चिरकाल से प्राकृत भाषा शासन करती रही है। अफगानिस्तान में इसे निया प्राकृत नाम मिला, तो बंग प्रदेश व बर्मा में मागधी रूप प्रचलित रहा, शेष भारत में कहीं अर्धमागधी, कहीं पैशाची, कही वाल्हीकी और कहीं महाराष्ट्री सज्ञा प्राप्त हुई। यहां, यदि प्राकृत से मतलब अनेक भाषाओं के समूह से नहीं है, तो ये सब विचार परिपक्व पुष्टता की प्रतीक्षा में है।
वररूचि सहित भारत के तमाम वैय्याकरण इस बात पर एक मत हैं कि