Book Title: Anekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 55
________________ अनेकान्त/13 नही दिए? या अन्य प्रतिष्ठित आचार्यों ने 'अरहंताण' का प्रयोग नही किया? क्या वे आचार्य मिथ्या है? उदाहरण के लिए पुष्पदन्ताचार्य, वीरसेनाचार्य के प्रयुक्त शौरसेनी-बाह्य निम्न शब्द रूप ही देखे जॉय षट्खंडागम मूलसूत्र = १११२ में 'सम्माइट्टी। सूत्र ११६० व १७७ में विग्गहगइ'। सूत्र ११२७ व १७३ में 'वीयराय' सूत्र ११४ 'गइ। 'सम्माइट्टी' 'मिच्छाइट्टी' अनेक सूत्रों में। षटखंडागम टीका = ११ पृ १७१ 'उच्चइ' कुणइ, पडिवज्जइ, दुक्कइ। पृ ६८ 'अस्सिऊण' पृ ६८ 'जयउ-सुय-देवदा', 'भणिऊण' आदि । इसी प्रकार अन्य बहुत से शब्द है। पाठक यह भी विचारें कि जब वीरसेनाचार्य णमोकारमंत्र की संस्कृत भाषा संबंधी व्याख्या में 'अर्हन्त' शब्द की बैकल्पिक व्युत्पत्ति अतिशय पूजार्हत्वाद्वार्हन्तः लिख रहे हैं, तो 'अर्ह धातु निष्पन्न सस्कृत 'अर्हन्त' शब्द का प्राकृत रूप 'अरहंत' होगा या 'अरिहंत? यदि शौरसेनी मे 'इकार' करने के लिए निर्धारित कोई सूत्र हो तो दृष्टिगत होना चाहिए। सर्वविदित है कि दिगम्बरो को परवर्ती सिद्ध करने के लिए विपक्षियों के प्रयास दीर्घकाल से चले आ रहे हैं। वे इस उपक्रम में कुन्दकुन्द आचार्य को पाँचवी-छठवी शताब्दी तक ले जाने के प्रयत्न करते रहे है। इसी प्रकार वे दिगम्बर आगमो को परवर्ती और तीर्थकर व गणधर की वाणी से बाह्य सिद्ध करने के लिए उन्हे अर्धमागधी हीन बतलाकर शौरसेनी भाषा मे निबद्ध होने की बात करते रहे है। जबकि स्वयं दिगम्बर लोग गणधर की वाणी को अर्धमागधी (मिली जुली भाषा -जैन शौरसेनी) घोषित करते हैं। __मुनि गुलाबचन्द 'निर्मोही' ने 'तुलसी-प्रज्ञा' के अक्टुबर-दिसम्बर ६४ के अंक मे पृ १६० पर लिखा है 'जैन तीर्थकर' प्राकृत अर्धमागधी में प्रवचन करते थें उनकी वाणी का संग्रह आगमग्रन्थों में ग्रथित हुआ है। श्वेताम्बर जैनों के आगम अर्धमागधी भाषा मे रचित हैं । दिगम्बर जैन सहित्य षट्खंडागम, कसायपाहुड, समयसार आदि शौरसेनी प्राकृत में निबद्ध है, इसी लेख में पृ १८२ पर उन्होने व्याकरण रचियता काल (भाषा भेद काल) भी दिया है जिसका प्रारम्भ २-३ शताब्दी से लिखा है। यह सब दिगम्बर आगमो को तीर्थकर वाणी बाह्य और पश्चादवर्ती सिद्ध करने के प्रयत्न हैं। दिगम्बरो को यह सोचना चाहिए कि क्यो (अनजाने मे) वे दिगम्बरत्व को स्वयं ही पीछे धकेल रहे हैं? हमारा तो इतना ही निवेदन है कि सशोधक टिप्पण दें और यदि प्राकृत में उनका प्रखर ज्ञान है तो अपने स्वतंत्र ग्रन्थ रचकर शास्त्राचार्यों की श्रेणी में बैठ जॉय। इस भांति उनकी प्रतिष्ठा भी होगी और प्राचीन आगम विरूप होने से भी बच जाएंगे। यह विषय अन्य विवाद में उलझने, उलझाने का नहीं-टिप्पण देकर सभी दिगम्बर आगमों के संरक्षण का है।

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