Book Title: Anekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 45
________________ अनेकान्त/3 एक भाषा वैज्ञानिक अध्ययन मंगलमंत्र णमोकार ० डॉ० जयकुमार जैन ___ यह सार्वभौम सत्य है कि संसार में प्रत्येक प्राणी सुख चाहता है और दुःख से भयभीत है- "जे त्रिभुवन मे जीवन अनन्त; सुख चाहे दुखतें भयवन्त ।' सुखप्राप्ति के उपाय के विषय में विषमता दृष्टिगोचर होती है। जड़वादी भौतिक सामग्री की उपलब्धि मे सुख मानता है किन्तु अध्यात्मवादी भौतिक सामग्रीजन्य सुख को सुखाभास समझकर इच्छाओ के अभाव में स्थायी सुख स्वीकार करता है। सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक विलियम जेम्स ने सुखप्राप्ति का एक सूत्र बतलाया है Achievement (लाभ)/ Expectation (आशा) - Satisfaction (संतुष्टि) अर्थात् लाभ अधिक हो तथा आशा कम हो तो सुख की प्राप्ति होती है और आशा अधिक हो तथा लाभ कम हो तो दुख मिलता है। इस सूत्र का सार यह है कि मनुष्य को आशाये कम करके सुख प्राप्त करना चाहिए। जब आशायें शून्य हो जाती है तो परमानन्द की प्राप्ति होती है। जैनाचार्यों का भी यहीं उद्घोष है 'आशागतः प्रतिप्राणि यस्मिन् विश्वमणूपमम्। कस्य कियदायाति तथा का विषयैषिता।।' वादीभसिह सूरि की तो स्पष्ट अवधारणा है कि आशा रूपी समुद्र की पूर्ति आशाओ की शून्यता से सभव है। भारतीय मनीषियों ने आशाशून्यता या आशान्यूनता की अवस्था पाने के दो साधन प्रतिपादित किये हैं- साधना (अभ्यास) और वैराग्य । इन दोनों से प्राणी प्रतिकूल परिस्थिति में भी सुख प्राप्त कर सकता है। महर्षि पतजलि द्वारा वर्णित मन को वश में करने के लिए चतुर्विध साधनो में मत्रो का महत्वपूर्ण स्थान है। भारत की आध्यात्मिक परम्परा में गुणी की पूजा उसके गुणों की उपलब्धि के लिए की जाती है- 'वन्दे तद्गुणलब्धये। इसका प्रमुखतम उपाय मन्त्रसाधना है, जो एक क्रियात्मक विज्ञान है तथा जिसके माध्यम से साधक साध्य से मिलकर साध्यगत गुणों को पा लेता है। मन्त्रसाधना से दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से छुटकारा पाया जा सकता है। जैन धर्म के मूल मन्त्र णमोकार में जिन पंच परमेष्ठियों को नमस्कार किया गया है वे या तो आशाशून्य

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