Book Title: Anekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 43
________________ अनेकान्त वर्ष ४८ Lवीर सेवा मंदिर, २१ दरियांगज, नई दिल्ली-२ अप्रैल-सितम्बर किरण २ . ३ वी.नि.सं. २५२१ वि स. २०५२ १६६५ - उपदेशी-पद मत राचौ-धी-धारी। भव रंभ-थंभ सम जानके, मत राचौ धी-धारी। इन्द्रजाल को ख्याल मोह टग, विभ्रम पास पसारी।। चहुंगति विपतिमयी जामें जन, भ्रमत मरत दुख भारी। रामा मा, मा वामा, सुत पितु, सुता श्वसा अवतारी।। को अचम्म जहँ आप आपके पुत्र देशा विस्तारी। सुर नर प्रचुर विषय-जुर जारे, को सुखिया संसारी।। मण्डल है अखंडल छिन में, नृप कृमि सधन भिखारी। जा सुत विरह मरी है वाघिन, ता सुत देह बिदारी।। शिशु न हिताहित ज्ञान, तरुन उर मदन दहन परजारी। वृद्धभये विकलंगी थाये, कौन दशा सुखकारी।। यो असार लख छार भव्य झट भये मोख-मगचारी। याते होहु उदास 'दौल' अब भजजिन पति जगतारी।।

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