Book Title: Anekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 28
________________ अनेकान्त/२३ इस बात की पुष्टि इससे भी होती है कि गोलापूरव गोलालारे व गोलसिघारे अपने को इक्ष्वाकुवंशी कहते है । और मैसूर राज्य पर गंगवंश का राज्य रहा जो इक्ष्वाकुवंशी थे । डा० ज्योति प्रसाद जैन ने 'भारतीय इतिहास एक दृष्टि में लिखा है - "इस वश (गंगवश) के नरेशो के शिलालेखों व ताम्रपत्रों से, साहित्यिक आधारो एवं जनश्रुतियो से ज्ञात होता है कि अयोध्या में तीर्थकर ऋषभ के इक्ष्वाकुवंश में राजा हरिश्चन्द्र हुए जिनके पुत्र भरत की पलि विजय महादेवी से गंगदत्त या गंगेय का जन्म हुआ । उसी के नाम से यह वंश गंगवंश कहलाया । गोलालारे समाज द्वारा प्रतिष्ठापित हतिकान्त की मूर्तियों मे "वर्मन" व "सिंह' नाम मिलते है | गंगवंश के राजाओ के नाम भी वर्मन और सिह है । इस प्रकार समानता प्रतीत होती है कि गोलालारे, गोलसिंगारे और गोलापूरव श्रवण वेलगोला के मूल निवासी है और वहा से ही व्रज बुन्देलखण्ड मे आकर बस गये । श्रवणवेलगोल प्रदेश ही गोलादेश है । टक्साल गली, दानाओली लश्कर - ग्वालियर ४७४००१ (मध्य प्रदेश) भारत संदर्भ :. १ डा० दरवारीलाल कोठिया अभिनन्दन ग्रन्थ - लेख गोलापूर्वान्वय प० फूलचन्द्र सिद्धान्त शास्त्री । २ अनेकान्त जून १९६९ लेख “जैन उपजातिया' प० परमानन्द शास्त्री । ३ अनेकान्त जून १९६९ लेख “जैन उपजातिया' पं० परमानन्द शास्त्री । ४ तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा लेखक डा० नेमीचन्द्र शास्त्री ज्योतिषाचार्य पृष्ठ ३८३ । ५. जैन धर्म का प्राचीन इतिहास भाग २ प० परमानन्द शास्त्री पृष्ठ २३९ गोल्लाचार्य ६ जैन शिलालेख संग्रह - प्रकाशन मणिकचन्द्र जैन ग्रन्थमाला लेखक हीरालाल (श्रवणबेलगोल स्मारक भूमिका मे | १७ भारतीय इतिहास एक दृष्टि - डा० ज्योति प्रसाद जैन पृष्ठ २५७ (गंगवंश) ।

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