Book Title: Anekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 25
________________ अनेकान्त/२० भाग, उत्तर प्रदेश में झांसी, हमीरपुर व बाँदा, जिले इसके साथ ही भिण्ड, इटावा, व आगरा जिले । इनकी भाषा गोल्लाभाषा के अन्तर्गत होने से गोल्लादेश कहा जाता रहा होगा । यह अनुमान सही हो सकता है- परन्तु यह बात सन्देहास्पद लगती है कि इतनी बड़ी राज्य सीमा (व्रज, बुन्देलखण्ड ) का गोल्लादेश नाम इतिहास. हिन्दी साहित्य व भूगोल में न आवे । गोल्लाचार्य मुनि का काल दसवीं शताब्दी का बताया जाता है । और जैन साहित्य भी इतनी बड़ी घटना को छिपाये रखा । चन्द्रगुप्त का जैन होना जैन साहित्य व इतिहास बड़े गर्व से प्रकट करता है, परन्तु गोल्लादेश के किसी राजा के जिनदीक्षा लेने के बारे मे प्रायः खामोश है । विशेषतया उस स्थिति मे जबकि गोल्लाचार्य मुनि बडे तपस्वी, शास्त्रज्ञ थे । दमवी शताब्दी के समय के चन्देल वंश के राजा तक का नाम मालूम नही हो सका । डा० ज्योतिप्रसाद जैन ने " भारतीय इतिहास एक दृष्टि' लिखा है उसमे समस्त जैन घटनाओ, जैन मुनियो, विद्वानो. श्रेष्ठी पुरुष, जैन धर्म के प्रति उदार शासको दानी पुरुषो का उल्लेख किया है । परन्तु उसमे न तो गोल्लाचार्य का नाम है और न गोल्लादेश का । चन्देलवश के वर्णन में भी किसी राजा के जैन दीक्षा लेने की घटना नहीं है | दूसरा कारण मलैया जी ने बताया है कि गोला पूर्व गोलालारे, गोलसिगारे जाति की उत्पत्ति स्थान गोल्लादेश है, और जातियाँ अपने मूल स्थान में भी रहती है । क्योंकि इन जातियों का मूल स्थान भी यही है, इसलिए भी गोलादेश यही होना चाहिए । परन्तु यह सर्वमान्य हल नही है । यह कहा जाता है कि जैन मुनि व जैन व्यापारी एक स्थान पर नही रहते । तव फिर यह पता लगाना पड़ेगा कि यहा से फिर कहां गये । ये जातियाँ आज भी इसी देश (ब्रज, बुन्देलखण्ड) में रहती है और पहिले भी रहती थीं । सौराष्ट्र के निवासी सौराष्ट्रवासी और भारत के निवासी भारतवासी कहलाते है । इनमे रहने वाली विभिन्न जातियो के उद्गम स्थान अलग है। भारत मे मुसलमान, ईसाई, पारसी रहते हैं तथा अलग -अलग स्थानो से आए है परन्तु भारतवासी हो गये । परन्तु गोलादेशीय कोई नहीं हुआ। तीसरी बात यह है कि जव कलकत्ते का रहने वाला कलकत्ता से बाहर जावेगा तव उसे कलकत्ते वाला या कलकत्तिया कहेंगे । कलकत्ते मे ही उसे कलकत्ते वाला नही कहेंगे । गोलादेश के रहने वाले गोलादेश में ही गोलालारे, गोल सिंगारे या गोल्ला पूरव नहीं कहे जा सकतं । अगर ऐसा होता तो यहां पर अन्य जातियाँ भी इसी नाम से सम्बधित मानी जाती । महाभारत काल में यह क्षेत्र गोपराष्ट्र कहलाता था । क्योंकि इसमे यादवों का प्रभुत्व व शासन था । यादव गांपालक कहे जाते है । अतः गोपराष्ट्र से गोलादेश में परिवर्तन का कारण दृष्टिगांचर नहीं होता । गांप. ग्वाला एक ही नाम के द्योतक है | परन्तु ऊपर पट्टालिया व प्रशास्तियो मे गोल्लादेश आया है इसकी कल्पना का आधार होना चाहिए । हमारी दृष्टि में यह प्रशंसात्मक एवं विशेषणयुक्त शब्द प्रतीत होता है ।

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