Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 7
________________ अम्बड चरित्रम् बुभुक्षिाकरणं न भुज्यते, पिपासितैः काव्यरसो न पीयते / न छंदसा केनचिदुद्भुत कुलं, हिरण्यमेवाजय निष्फलाः कलाः // 17 // वयोवृद्धास्तपोवृद्धाः ये च वृद्धा बहुश्रुताः / सर्वे ते धनवृद्धस्य द्वारे तिष्ठन्ति किङ्कराः॥१८॥ कषांचिनिजवेश्मनि स्थितवतामालस्यवश्यात्मनां / दृश्यन्ते फलिता लता इव फलैरामूलचूलं श्रियः॥ अन्येषां व्यवसायसाहसवतां क्षोणीतले गच्छता मब्धि लङ्घयतां खनी खनयतां तं नास्ति यभुज्यते // 11 // इत्थं सर्वत्र भूपीठे धनार्थी सोद्यमो भ्रमन् / ययौ धनगिरौ शैले यत्र गोरख(गोरक्ष)योगिनी // 20 // मातृवत् वीक्ष्य तां नत्वा तदने समुपाविशत् / सुविनीतस्तया ज्ञात्वा पुत्रवत् सोऽपि जल्पितः // 21 // कस्त्वं किमर्थमायातः, किं नामेति निशम्य च / सोऽवक रथपुरायातो निःस्वोऽहमम्बडः श्रिये // 22 // मातृमातदरिद्रोऽस्मि धनार्थी क्षत्रियान्वयः / वाञ्छितं त्वयि दृष्टायां त्वन्मनो मयि वत्सलः // 23 // यतः-विरला जानन्ति गुणान् विरला पालंति निद्धणा नेहा / विरला परकजकरा परदुःखे दुखीआ विरला // 24 // // 3 //

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