Book Title: Ambad Charitram Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala View full book textPage 6
________________ अम्बड चरित्रम् // 2 // अधस्तस्या महानेको, भाण्डारो भवति श्रियाः / अनेकविधमाणिक्यः रत्नहैमसमन्वितः // 6 // नृपः पप्रच्छ तं कोशमगम्यं चर्मचक्षुषाम् / कथं त्वमेव जानासि योऽभवत् ज्ञानगोचरः॥७॥ परं कथय भोः कस्त्वं ? किनामा कस्य नन्दनः / कुतः स्थानात् समायातः, सर्व निगद मूलतः // 8 // उवाच स च साश्चर्यं राजन् विज्ञपयाम्यहम् / दृष्टप्रत्यक्षभाण्डार-स्तस्यादिः श्रूयतामिति // 6 // स्वामिन् रथपुरादेतो भवदर्शनहेतवे / अहं कुरुबको नाम्ना मत्पिता क्षत्रियोऽम्बडः // 10 // आजन्म निर्द्धनः सोऽपि धनार्थी भुवि सर्वतः / मन्त्रतन्त्रौषधी धातु-धमनं कुरुते भ्रमन् // 11 // न प्राप्नोति परं कुत्र लवलेशमपि श्रियाः। वेत्ति जीवो विना भाग्यं नैव लाभोदयः क्वचित् // 12 // || यतः–नहि भाग्यं विना लक्ष्मीविद्या नाऽभ्यसनं विना / न सन्तोषात्परं सौख्यं मुक्तिर्नोपशमं विना // 13 // अम्बडो गुणवानस्ति चातुर्येण गुणैरपि / लक्ष्मीवान श्लाध्यते लोके गुणविद्याधिका श्रियः // 14 // यतः-अर्थसञ्चयकर्तृणि भाग्यानि पृथगेव हि / गुणाः खलु एव न गुणा भूतिहेतवः // 15 // "मूरखडा टपावइटार पंडितडा पालाई पुलाई / तूझकूटु किरतार गोटीलेपरीअटतणे ? // 16 // // 2 //Page Navigation
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