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अल्पज्ञत्वात् प्रमादाद् वा स्रवलित तत्र तत्र यत् ।
सशोध्य गृह्यता सद्भि श्लिष्टावकरदृष्टिवत् ।।
अ०चि0 5/406
इन्होंने प्राय संस्कृत काव्यशास्त्र के सभी विषयों का उल्लेख किया है जिनमे रस, अलकार गुण, वृत्ति नेतृ- गुणांदि की भी चर्चा की गयी है । इन विषयों के परिशीलन से
यह विदित होता है कि महाकवि अजितसेन का अलकारशास्त्र पर पूर्ण अधिकार
था ।
कृतित्व -
महाकवि अजितसेन द्वारा रचित अलकारशास्त्रीय दो कृतियों का उल्लेख प्राप्त होता है । प्रथम कृति - 'शृङगारमञ्जरी' है जो तीन अध्यायों और 128 परिच्छेदों मे विभक्त है । इसमे दोषगुण तथा अर्थालकारों का विवेचन किया गया है ।।
मूलग्रन्थ के अभाव मे इस ग्रन्थ के प्रणेता के विषय मे स्पष्ट रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि कुछ भण्डारों की सूचियों मे यह ग्रन्थ रायभूप की कृति के रूप मे उल्लिखित है 12
सस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास पृ0 - 545 राज्ञी विट्ठलदेवीति ख्याता शीलविभूषणा । तत्पुत्र कामिराख्यो 'राय' इत्येव विश्रुत ।। तद्भूमिपालपाठार्थमुदितेयमलकिया । सक्षेपेण बुधैर्येषा यद्भात्रशस्ति ? विशोध्यताम् ।।
अचि0 प्रस्तावना पृ0 - 320