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अध्याय - 7
नायक - नायकादि विमर्श
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नायक के सामान्य गुण
समाज में सम्माननीय तथा सर्वश्रेष्ठ चरित्रवान, विद्वान, सत्यवादी और सौन्दर्यवान व्यक्ति का ही विशेष समादर होता है अत काव्य में उपर्युक्त गुणों से सम्पन्न व्यक्ति को ही नायक की कोट में रखा जाता है । रामायण तथा महाभारत के पात्रों मे प्राय उपर्युक्त गुण सम्पन्न व्यक्ति देखे जा सकते हैं । उन्हीं के आधार पर लक्षण प्रन्यों का निर्माप हुआ। अत इन्ही लक्षण ग्रन्थों में निरूपित नायक नायिकदि के स्वरूप पर दृष्टिपात् किया जा रहा है ।'
नाट्यशास्त्र में रूपकों का भेद नायक के आधार पर विहित है । अत सर्वप्रथम नायक के गुणें पर विचार कर लेना अनुपयुक्त न होगा । आचार्य अजित सेन के अनुसार माधुर्य, शैच, स्मृति, धृति-कैर्य, विनय, वाग्मिता, उत्साह, मान, तेज, धर्म, दृढता, मधुरभाषण, प्राज्ञता-विद्वता, दक्षता, त्यागशीलता, लोकप्रीति, मति-बुद्धिमत्ता, कुलीनता, सत्कलाविजेता, शास्त्रार्थ की क्षमता, सुभाषिज्ञता, तारूण्य आदि गुण नायक में होते हैं । इनके द्वारा निरूपित नायक गुणों का उल्लेख किचित् अन्तर के साथ पूर्ववर्ती आचार्य धनञ्जय तथा परवर्ती विद्यानाथ, अमृतानन्द योग आदि ने भी किया है ।
आचर्य अजितसेन ने धीरोदात्त, धीरललित, धीरशान्त, तथा धीरोद्धत्त रूप से नायक के चर भेदों का उल्लेख किया है । उपर्युक्त प्रत्येक नायक को पूर्व पक्तियों में वर्पत नायक के गुपों से प्राय युक्त होना चाहिए । इन नायकों में भेद व्यवस्था रस की दृष्टि से भिन्नता होने के कारण की गयी है -
धीरोदात्त नायक.
अजितसेन के अनुसार - दयालु घमण्ड रहित, क्षमाशील, अविकत्थन
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कवितनसंदर्भो गमक कृतिभेदक । वादी विजयवाग्वृत्तर्वाग्मी तु जनरञ्जन ।। अ०चि0, 5/305 अचि0, 5/312 का द0रू0, 2/1, 2 ख प्रताप0, नायक प्रकरण, श्लोक - ।। ग अ0स0, 4/1, 2 अचि0, 5/313