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शोभा
कान्ति. -
दीप्ति
रूप और तरुपाई से अर्गों के अलंकरण को शोभा कहते हैं ।
अत्यन्त राग और रस से परिपूर्ण शोभा ही कान्ति है ।
अत्यन्त विस्तृत हुई कान्ति 'दीप्ति' है ।
प्रागल्भ्यः - लज्जा से उत्पन्न भय के त्याग को प्रगल्भता कहते हैं ।
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माधुर्य -
धैर्य. -
औदार्य:
लीला. -
विलास. -
प्रशसनीय वस्तुओं के योग न रहने पर भी रम्यता को माधुर्य कहते हैं ।
अचचल मनोवृत्ति को धैर्य कहते हैं ।
बहुत परिश्रम करने पर भी सदा विनय भाव रखने को औदार्य कहते हैं ।
मधुर चेष्टाओं तथा वेषादि से प्रियतम के अनुकरण को लीला कहते हैं ।
प्रियतम के दर्शन से स्थान, आसन, मुख और नेत्रादि क्रियाओं की विशेषताओं को विलास कहते हैं ।
ललित. - अगों की सुकुमारता, स्निग्धता, चाचल्य इत्यादि को ललित कहते हैं। किलकिंचित :- शोक, रोदन और क्रोध आदि के साकर्य को किलकिचित कहते हैं ।
विभ्रमः - प्रियतम के आगमनादि के कारण हर्षवश नायिका द्वारा श्रृंगार करना मूलवस्त्रादि को विपरीत क्रम से धारण करने को विभ्रम कहते हैं ।
कुट्टमित :- केवल दिखावट के लिए जो नायिका के द्वारा निषेध किया जाता है, वह कुट्टमित है ।
मोट्टायित: - प्रियतम को चित्रादि में देखने पर उसे वस्तुत अग आदि तोडना, अंगड़ाई लेना, पसीना आना, अथवा प्रियतम के स्मरण करने पर उक्त चेष्टाओं के होने को मोट्टायित कहते हैं ।
व्याहृत..
बिब्बोक :- गर्व के आवेश या प्रेम की जाँच के लिए या दीप्ति के लिए नायिका के द्वारा किए गए नायक के अपमान को बिब्बोक कहते हैं ।
विच्छित्तिः:- आवश्यकता पडने पर थोडे ही आभूषणों से सन्तोषजनक कार्य हो जाए, तो उसे विच्छित्ति कहते हैं ।
अत्यन्त आवश्यक और कहने के कारण नहीं कही जाए तो उसे
योग्य बात भी जब लज्जा की अधिकता व्याहृत कहते हैं ।