Book Title: Alankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Archana Pandey
Publisher: Ilahabad University

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Page 273
________________ आचार्य के लक्षण को पूर्णतया उद्धृत नहीं किया । इनके लक्षणों में नवीनता का आधान भी हुआ है । अजितसेन द्वारा निरूपित अलंकारों में भी वैदुष्य का परिचय प्राप्त होता है । परवती काल में आचार्य विद्यानाथ कृत अलकार निरूपण पर अजितसेन का स्पष्ट प्रभाव है । आचार्य अजितसेन द्वारा निरूपित उपमालकार को तो विद्यानाथ ने अक्षरश उद्धृत कर दिया है । जिसका खण्डन अप्पयदीक्षित ने चित्रमीमासा में किया है । किसी आचार्य के लक्षण को विविध ग्रन्थों में उद्धृत कर उसकी विवेचना प्रस्तुत करना कवि के वैदुष्य और गौरव का ही परचायक होता है । आचार्य अजितसेन ने वक्रोक्ति का निरूपण दो कार किया है। प्रथम शब्दालकारों के अन्तर्गत तथा द्वितीय बार अर्थालकारों के अन्तर्गत जबकि इनके पूर्व किसी भी आचार्य ने ऐसा नहीं किया । इन्होंने चित्रालकार का सर्वाधिक विवेचन किया है अलकार चिन्तामणि में लगभग 48 भेदों के लक्षण व उदाहरण दिए गए हैं । यद्यपि चित्र काव्य का निरूपण आचार्य रुद्रट ने भी किया था लेकिन इनका विवेचन विशिष्ट है । दोष निरूपण के सन्दर्भ में जिस प्रकार से इन्होंने कतिपय दोषों की अदोषत का उल्लेख किया है उसी प्रकार से गुण निरूपण के सन्दर्भ में कतिपय गुपों के दोषाभाव पर भी अपने विचार व्यक्त किए हैं । शेष प्रबन्ध का विवेचन प्राय ऐतिहासिक अनुक्रम से आदान-प्रदान की दृष्टि से किया गया है । अनुसन्धान के समय यह ध्यान दिया गया है कि प्राय अनुसन्धात्री की अनुसन्धात्मक प्रवृत्ति का ही प्राधान्य रहे । मेरा विश्वास है कि अलकार चिन्तामणि का यह समीक्षात्मक विवेचन अलंकार शास्त्र के क्षेत्र मे उपादेय हो सकेगा। वर्ण्यस्य साम्यमन्येन स्वत सिद्धन धर्मत । भिन्नेन सूर्यभीष्टेन वाच्यं यत्रोपमकदा ।। अ०चि0, 4/18 तुलनीय स्वत सिद्धन भिन्नेन समतेन च धर्मत. । साम्यमन्येन वर्ण्यस्य वाच्यं चेदेकदोपमा ।। प्रताप0, अर्थालंकार प्रकरण पृ0-414 चित्रमीमासा, पृ0 42, व्याख्याकार - श्री जगदीशचन्द्र मिश्र अ०चिo, 3/1 तथा 4/170

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