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इन भेदों के सम्बन्ध में प्राय सभी आचार्यों के विचार समान हैं । प्रत्येक नायक के उत्तम, मध्यम तथा अधम - तीन कोटियाँ होती हैं । अत 016x3 = 48 नायक के कुल 48 भेद हो जाते हैं 12 इसके अतिरिक्त इन्होंने नायक के सहायकों का भी उल्लेख किया है जो इस प्रकार है -
विदूषक - नायक को प्रसन्न रखने वाला तथा हसाने वाला होता है ।
विट.-
नायक के भीतरी प्रेम व अनुकूलता को जानने में सक्षम होता है ।
पीठमर्द - नायक से कुछ कम मुप वाला तथा कार्य मे कुशल होता है ।
प्रतिनायक:- लेभी, धीर, उद्दण्ड, अस्तब्ध तथा महापापी ।
इसके अतिरिक्त इन्होंने नायक के सात्विक कुपों का भी उल्लेख किया है जो निम्नलिखित हैं -4
गम्भीरता, स्थिरता, मधुरता, तेज, शोभा, विलास, औदार्य और लालित्य।
गम्भीरता -
धुब्धावस्था में भी प्रभाव के कारण जो विकृति का अभाव है उसे सम्भीरत कहते हैं ।
स्थैर्य माधुर्य और तेज -
महान विघ्न के उपस्थित हो जाने पर भी कार्य से विचलित न होने को स्थैर्य कहते हैं । सूक्ष्म कलाओं के संचय, प्रत्यक्ष और तर्कज्ञान को माधुर्य कहते हैं । प्रापनाश के समय भी धिक्कार को नहीं सह सकने को तेज कहते हैं ।
का द0रू0, 2/6, 7 ख प्रताप0 नायक प्रकरण, श्लोक 34 का अचि0, 5/328 तथा 5/329 का पूर्वाद्ध
ख) द0रू0 द्वितीय प्रकाश सा0द0, 3/38 विदूषकोविट पीठमर्दो नेतृसहायका ।। अचि0 5/329 का उत्तरार्थ, द्र0 5/330, 31 अचि0, 5/332 द्र05/333 से 36 तक ।