Book Title: Alankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Archana Pandey
Publisher: Ilahabad University

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Page 263
________________ नायक की कोटि मे स्वीकार करने में किसी भी प्रकार की विप्रतिपत्ति नही होनी चाहिए। धीरोद्धत्त नायक - धीरोद्धत नायक छल-कपट द्वारा कार्य सिद्धि का प्रयत्न करता है आत्म प्रशसा में लीन मायादि के प्रयोग से मिथ्या वस्तु के उत्पत्ति करने वाला, प्रचण्ड, चपल तथा अहंकारी होता है । अजितसेन कृत परभाषा भी धनञ्जय के समान ही है। किन्तु साहित्यसार के रचयिता उद्धत को नायक के रूप मे स्वीकार नहीं करते हैं । 'उपर्युक्त सभी नायकों में धीर शब्द के उल्लेख से यह विदित होता है कि कोई भी नायक भले ही लालित्य औदात्य प्रशान्तता तथा औद्धत्यादि शील सम्पदाओं में से किसी एक से विभूषित हो सकता है पर प्रत्येक नायक का धीर होन आवश्यक है । यह धीरता ही पात्र को नायक पद की मर्यादा से विभूषित करती है । आचार्य अजितसेन ने पुन श्रृगार रसानुसार प्रत्येक नायक के दक्षिण, शठ, धृष्ट और अनुकूल इन चर भेदों का उल्लेख किया है । इस प्रकार नायक के 4x4 = 16 सेलह भेद हो जाते हैं । इन नायकों का स्वरूप इस प्रकार दक्षिण अत्यन्त सौम्य अप्रिय प्रति कारक अपराधी होने पर भी भयरहित स्वप्रियतमा के आधीन अनुकूल --------------------------- का द0रू0, 2/5, ख सा0द0, 3/33 चपले कञ्चको दृप्तश्चण्डो मायमण्डित' । विकत्थनो यौ नेता मतो धीरोद्धतो यथा ।। अचि0, 5/320 सामा0, II/2 - वेधा नेता प्रकीर्तिता । उद्धृत - संस्कृत रूपकों के नायक, ना०शा0 विमर्श ले0, डॉ0 राजदेव मिश्र, पृ0 - 78 वही, पृ0 - 79 अचि0, 5/322-23

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