Book Title: Alankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Archana Pandey
Publisher: Ilahabad University

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Page 259
________________ गुप दोष के अभाव के रूप में सम्मितत्व समता रीति सुकुमारता औपित्य अर्थव्यक्ति प्रसाद औदार्य न्यूनाधिक दोष के परिहारार्थ प्रकरान्ति दोष के अभाव के रूप में परप्रकर्फ दोष के परिहारार्थ श्रुक्किटुत्वदोष के अभाव रूप विसन्धि दोष की निवृत्ति के लिए अपुष्ट दोष को दूर करने के लिए क्तिष्ट दोष की निवृत्ति के लिए आचर्य वाग्भट के अनुसार अर्थचारूता के नियोजन के लिए इसका प्रयोग होता है । इति वाग्भटोक्तिरपीष्टा अचि0 पृ0 305 च्युत संस्कार दोष की निवृत्ति के लिए अनुचतार्थत्व दोष निवृत्ति के लिए वाग्भट इसका अन्तर्भाव औदार्य में मानते हैं । उदात्तत्वमौदार्यऽन्तर्भवति वाग्भटाद्यपेक्षया । अ०चि० पृ0 308 पारुष्य दोष की निवृत्ति के लिए । सूक्ति उदात्तता प्रयान् उपर्युक्त गुपों के अतिरिक्त शेष गुण काव्य के उत्कर्षाधायक के रूप में स्वीकार किए गए हैं । आचार्य भामह, मम्मट तथा पण्डितराज, जगन्नाथ, माधुर्य, ओज तथा प्रसाद रूप से गुणें की संख्या तीन ही स्वीकार करते हैं ।' उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि मम्मट से पूर्व गुण निरूपण सम्बन्धी विचारधाराएँ प्राय. असमान थी । किन्तु मम्मट के पश्चात् यह विचारधारा स्थिर सी हो गयी यही कारण है कि मम्मट से पण्डितराज जगन्नाथ तक प्राय सभी आचार्यों ने माधुर्य, ओज एवं प्रसाद इन तीन गुणे को ही स्वीकार किया है । - - - - - - - - - - - - - - - का भा0, काव्या, 2/1, 2 ख) माधुर्याज प्रसादाख्यास्त्रयस्ते न पुनर्वश । का0प्र0, 8/68 का पूर्वाद्ध ग अतस्त्रय एव गुण इति मम्मटभट्टादय. । र००, प्रथम आनन, पृ0 255

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