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आचार्य अजितसेन ने कवि, गमक, भी उल्लेख किया है ।
वादी और वाग्मी के स्वरूप का
अभिनव रचना करने वाले को कवि, कृति के समालोचक को गमक, विजय वाणी से जीविका करने वाले को वादी तथा व्याख्यान कला से जनता को मुग्ध करने वाले को वाग्मी कहा है ।।
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कविनूतनसदर्भों नमक कृतिभेदकः ।
वादी विजयवाग्वृत्तिर्वाग्मी तु जनरञ्जन ।। अचि०, 5/305