Book Title: Alankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Archana Pandey
Publisher: Ilahabad University

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Page 258
________________ (120 0130 (140 0 1 5 0 (16) 0190 (200 (21) (220) (23) कान्तिः (240 और्जित्य. - अर्थव्यक्ति: औदार्य - प्रसाद- 017, 180 सौक्ष्म्य और ओजः - शब्दों के गुण, रीति के कथन को सौक्ष्म्य कहते हैं तथा जिसमें समास की बहुत अधिकता हो उसे स्पष्टतया ओजनुष कहते हैं । विस्तर: सूक्ति. - प्रौढ़ि : उदात्तताः प्रेयान्: काव्य में रचना की अत्यन्त उज्ज्वलता को कान्तिगुप कहते हैं । दृढबन्धता को और्जित्य कहते हैं । संक्षेपक जहाँ दूसरे वाक्य की अपेक्षा न रखने पर वाक्य पूर्ण हो जाये उसे अर्थव्यक्ति कहते हैं । विकट अक्षरों की बन्धता को औदार्य कहते है । अर्थ शब्द और अर्थ की प्रसिद्धि तथा झटिति को समझा देने की क्षमता को प्रसाद गुण कहते हैं । किसी विषय के समर्थन के लिए कथित अर्थ के विस्तार को विस्तर कहते हैं । ति और सुप के उत्तमज्ञान को मैशब्ध कहते हैं । अपने कथन के सम्यक् परिपाक को प्रौढि कहते हैं । जहाँ प्रशंसनीय विशेषणों से पद युक्त होते वहाँ उद्यत्वता नामक गुप होता है । अत्यन्त अनुनयमय वचनों से जहाँ कोई प्रिय पदार्थ प्रतिपादित हुआ हो वहाँ प्रेयान् गुण होता है । जहाँ किसी अभिप्राय को बहुत सक्षेप से कहा जाये वहाँ संक्षेप नामक गुण होता है । कतिपय गुणों का दोष परिहारार्थ परिगणनः आचार्य अजितसेन ने उपर्युक्त भुषों में से कतिपय गुणों को दोषों के अभाव के रूप में स्वीकार किया है जो निम्नलिखित है- 1 3100, 5/272, 75, 77, 84, 91, 92, 97, 303, 307, 308, 309

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