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आचार्य अजितसेन ने रुद्रट और मम्मट के लक्षण का समन्वय प्रस्तुत किया है । इनके अनुसार जहाँ प्रश्न और उत्तर दोनों का निबन्धन हो अथवा उत्तर से ही प्रश्न की कल्पना की जाए वहाँ उत्तरालकार होता है । इस प्रकार से इन्होंने प्रश्नोत्तर के दो भेदों का उल्लेख किया है ।'
विद्यानाथ कृत परभाषा अजितसेन के समान है ।2 परवर्ती आचार्यों मे जयदेव, दीक्षित तथा प० राज जगन्नाथ की परिभाषाये प्राय अजितसेन के समान ही है 13
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वाक्यन्यायमूलक अलकार -
विकल्प -
इस अलकार की उद्भावना का श्रेय आचार्य रुय्यक को है । इनके अनुसार जहाँ दो वस्तुओं मे तुल्य बल विरोध होने पर एक को ही स्वीकार किया जाए वहाँ विकल्पालकार होता है । 4
___ आचार्य अजितसेन के अनुसार जहाँ सम प्रमाण वाले दो पदार्थों में औपम्यादि की प्रतीति एक ही साथ होने पर विरोध प्रतीत हो, वहाँ विकल्पालकार होता है। इन्होंने अपनी परिभाषा मे औपम्यादि का उल्लेख करके एक नया विचार व्यक्त किया है ।
__ आचार्य शोभाकरमित्र तुल्य बल विरोध होने पर पाक्षिक वस्तु के ग्रहण को विकल्पालंकार के रूप में स्वीकार किया है । आचार्य विद्यानाथ, विद्याधर,
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अचि0, 4/290 एव वृत्ति
प्रश्नोत्तरे निबध्यते बहुधा वात्तरादपि । प्रश्न उन्नीयते यत्र सोत्तरालक्रिया द्विधा ।। प्रताप0 पृ0 - 552
का चन्द्रा0, 5/108 खि कुव0, 149, 50 गा र070, पृ0 - 700 अ0स0, पृ0 - 200 विमर्शिनी विरीधे तु द्वयोर्यत्र तुल्यमानविशिष्टयो ।
औपम्याधुगपत्प्राप्तौ विकल्पालकृतियथा ।। विरूद्धयोस्तुल्यत्वे पाक्षिकत्व विकल्प ।।
अचि0, 4/293
अ0र0, 88