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उदात्त:
आचार्य भामह के अनुसार जहाँ चरित्र की महत्ता या सम्पत्ति की सवृद्धि का वर्णन किया जाए वहाँ उदात्त अलकार होता है । आचार्य दण्डी ने भी आशय तथा सम्पत्ति के वर्पन में उदात्त अलकार को स्वीकार किया है । उद्भट कृत परिभाषा भामह से प्रभावित है । आचार्य मम्मट - महापुरूषों के चरित्र वर्णन मे तथा वस्तु - सम्पत्ति के वर्षन मे उदात्त अलकार को स्वीकार करते है । आचार्य रुय्यक, शोभाकर मित्र, जयदेव तथा अप्पय दीक्षित कृत परिभाषाएँ समान है । जबकि आचार्य अजितसेन, महासवृद्धि के वर्णन मे ही उदात्त अलकार को स्वीकार किया है । यह सम्वृद्धि चारित्रिक भी हो सकती है क्योंकि उनके द्वारा प्रदत्त उदाहरण मे चारित्रिक सम्वृद्धि तथा धन सम्वृद्धि दोनों का ही प्रतिपादन किया गया है । इससे विदित होता है कि इन्हे भी सवृद्धि वर्णन तथा चरित्र वर्णन मे उदात्त अलकार अभीष्ट है । विद्यानाथ कृत परिभाषा अजितसेन से प्रभावित है ।।
काव्या0, 3/11-12 का0द0, 2/300 काव्या० सा0स0, 4/8 का0प्र0, 10/115
का समृद्धि वस्तुवर्णनमुदात्तम् ।। अ0स0, सूत्र - 8। एख, उदारचरितामत्वमुदात्तम् ।। अ0र0, सू0 - 108 ग उदात्तमृद्धश्चरित श्लाध्य चान्योपलदाणम् ।। चन्द्रा0, 5/115 घ, उदात्तद्धिश्चरित श्लाध्य चान्योपलक्षणम् ।। कुव0 सू0 162 महासमृद्धिरम्याणा वस्तूना यत्र वर्णनम् । विधीयते च तत्र स्यादुदात्तालंक्रिया यथा ।। अ०चि0, 4/319 तदुदात्त भवेद्यत्र समृद्ध वस्तु वर्ण्यते । प्रताप0 पृ0 - 567