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आचार्य रुय्यक, शोभाकर मित्र, दीक्षित तथा पण्डितराज कृत परिभाषा अजितसेन के समान है ।
सूक्ष्म -
आचार्य भामह हेतु सूक्ष्म तथा लेश को अलकार मानने के पक्ष में नहीं है । इस सन्दर्भ मे भामह का कथन है कि इन अलकारों मे वक्रोक्तिकाअभाव रहता है अत इन अलकार की कोटि मे स्वीकार करना उचित नहीं है 12
आचार्य दण्डी ने इगित और आकार से लक्षित अर्थ को सूक्ष्म अलकार के रूप में स्वीकार किया है तथा इसे वाणी का उत्तम आभूषण भी बताया है । आचार्य मम्मट के अनुसार कहीं से लक्षित सूक्ष्म अर्थ यदि अन्य व्यक्ति पर प्रकट कर दिया जाए तो वहाँ सूक्ष्म अलकार होता है । आचार्य अजितसेन ने मम्मट के लक्षण के आधार पर सूक्ष्म को परिभाषित किया है इनके अनुसार जहाँ आकार एव चेष्टा से पहचाना हुआ सूक्ष्म पदार्थ किसी चातुर्यपूर्ण सकेत से सहृदयवेद्य बनाया जाए तो वहाँ सूक्ष्म अलकार होता है । विद्यानाथ, विश्वनाथ तथा अप्यय दीक्षित कृत परिभाषा अजितसेन के समान है ।'
क) अ0स0, सू० - 61 ख) अर0, ग कुव0, 110 घा र0म0, पृ0 - 645 ड! चन्द्रा, 5/93 भा०काव्या0, 2/83 हेतुश्चसूक्ष्मलेशौ च वाचामुत्तमभूषणम् । इंमिताकारलक्ष्योऽर्थ सौक्ष्म्यात् सूक्ष्मइति स्मृत ।। का0प्र0, 10/122 . कायाकारेंगताभ्या हि सा सूक्ष्मालकृतियथा । सुभद्रा नवसर्गे प्रिये क्षुतवति द्रुतम् ।। क) असलक्षितसूक्ष्मार्थ प्रकाशः सूक्ष्म उच्यते । ख/ सा0द0, 10/91 गि कुव0 151
. का0द0, 2/235
अचि0, 4/317
प्रताप0 पृ0 - 566