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आचार्य मम्मट ने शब्द, अर्थ तथा शक्ति के तीन भेदों का उल्लेख किया है जो इस प्रकार है । '
व्यजक
इसके अतिरिक्त का भी निरूपण किया है 12
1.
शब्द
वाचक
लक्षक
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आचार्य अजितसेन कृत विवेचन पर मम्मट का प्रभाव है किन्तु इन्होंने तात्पर्यार्थ को व्यग्यार्थ के रूप में स्वीकार किया है । इन्होंने गौणी वृत्ति को लक्षणा 'गंगाया घोष' में गंगा शब्द
विशेष के रूप मे ही स्वीकार किया है । उदाहरणार्थ मुख्यार्थं है क्ट लक्ष्यार्थ है तथा शीतलादि व्यग्य है । 3
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शब्द अर्थ तथा शब्द शक्तियों
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कतिपय आचार्य सिहो माणवक मे सादृश्य सम्बन्ध के कारण गौणी लक्षणा स्वीकार करते हैं । इसका उल्लेख आचार्य मम्मट ने भी किया है 1 अजितसेन के अनुसार वाच्यार्थ के अन्वित न होने से वाच्यार्थ सम्बन्धों में अच्छी तरह से आरोपित शब्द व्यापार को लक्षणा कहा गया है यह दो प्रकार का होता है सादृश्य हेतु का और सम्बन्धान्तर हेतु का । सादृश्य हेतु लक्षणा के भी जहवाच्या तथा अजहद्द्वाच्या दो भेद होते हैं । अपने वाली लक्षणा को जहदवाच्या तथा अपने अर्थ को त्यागे करने वाली लक्षणा को अजहवाच्या कहा गया है ।
वाच्यार्थ को त्याग देने
बिना अन्यार्थ को ग्रहण
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शब्दशक्ति
अभिधा
लक्षणा
व्यञ्जना
मीमांसकों के मत में होने वाली तात्पर्याख्या शक्ति
अर्थ
वाच्यार्थ
लक्ष्यार्थ
व्ययार्थ
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का०प्र०, द्वितीय उल्लास ।
का०प्र०, प्रथम उल्लास ।
वाच्यलक्ष्यव्यग्यभेदेन त्रिविधोऽर्थः । त्रैविध्यात् । व्यंग्यार्थ एव तात्पर्यार्थ । न पुनश्चतुर्थ ।
का०प्र०, द्वितीय उल्लास ।
वाचकलक्षक व्यंजकत्वेन शब्दानां
अचि०,०
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