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अतद्गुणः
आचार्य मम्मट के अनुसार जहाँ अत्यन्त उत्कृष्ट गुणवाली वस्तु के सानिध्य मे रहने पर भी न्यूनगुण वाली वस्तु उत्कृष्ट गुण वाली वस्तु के गुण को ग्रहप न करे वहाँ अतदगुण अलकार होता है ।'
आचार्य अजितसेन के अनुसार गुप ग्रहण हेतु के विद्यमान रहने पर भी जहाँ कोई वस्तु या पदार्थ उत्कृष्ट गुण वाली वस्तु या पदार्थ के गुण को ग्रहण न करे वहाँ अतद्गुण अलकार होता है ।2 आचार्य अजितसेन अतद्गुण में विरोध के सहभाव को भी स्वीकार करते हैं ।
___ आचार्य रुय्यक, जयदेव, विद्यानाथ, विश्वनाथ तथा अप्यय दीक्षित आदि की परिभाषाएँ प्राय समान हैं ।
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विरोधमूलक अलंकार.
विरोध -
इस अलकार का सर्वप्रथम उल्लेख आचार्य भामह ने किया है । भामह के अनुसार गुण अथवा क्रिया के के विरुद्ध अन्य क्रिया के वर्णन को विरोध अलकार कहते हैं 15
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का0प्र0, 10/138
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अ०चि0, 4/184
वही, वृत्ति अ0स0, वि0, पृ0-214
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तद्रूपाननुहारश्चेदस्य तत् स्यादतगुप । यत्र सन्निधिरूपे तुहेतो सत्यपि वस्तुन । नेतरस्य गुपादान सोऽलकारो यतद्गुप ।। विरोधस्यातद्गुणेन किञ्चिद्प्रारब्धत्वाद्विरोध उच्चयते ।
का सतिहेतो तद्रूपाननुहारोऽतद्नुपः । ख एकावली, 8/65 ग प्रताप०, पृ0 - 172 घा सा0द0, 10/90 ड) कुव0, 144 गुणस्य वा क्रियाया वा विरुद्धान्यक्रियाभिधा । या विशेषाभिधानाय विरोधं तं विदुर्बुधा. ।।
भा०-काव्या0, 3/25