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राजानक मम्मट
ओर विश्वनाथ की भेदसरषि रूद्रट के मतवाद पर
आधृत है ।।
आचार्य अजितसेन ने विषम के तीन भेदों का उल्लेख किया है ।2
10 कारण के विरुद्ध कार्य की उत्पत्ति मे प्रथम प्रकार का विषम, 020 अनर्थ-प्राप्ति मे द्वितीय विषम स्थान पर तदविपरीत परिणाम के निरूपण मे द्वितीय प्रकार का विषम, 13 विरूप सघटना मे तृतीय विषम ।
अजितसेन ने विषम का लक्षण न देकर केवल भेदों का ही उल्लेख किया है । इसका समग्र लक्षण अननुरूप सघटना के वर्णन मे ही निहित है ।
परवर्ती काल मे आचार्य विद्यानाथ कृत परिभाषा पर अजितसेन का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है । शोभाकर मित्र ने अजितसेन द्वारा निरूपित तीन भेदों के अतिरिक्त दो अन्य भेदों का भी उल्लेख किया है जो इस प्रकार है -
अनर्थ के स्थान पर अनर्थ की प्राप्ति अनर्थ के स्थान पर अर्थ की प्राप्ति विरूप कार्य की उत्पत्ति विरूप संघटना असमानता
भेदों
मे
प्रथम, तृतीय तथा
चतुर्थ भेद
अजितसेन
से
उपयुक्त प्रभावित है।
का का0प्र0 - 10/126-27 ख सा0द0 - 10/91 हेतोविरुद्धकार्यस्य यत्रानर्थस्य चोद्भव । विरूपघटना त्रेधा विषमालकृतियथा ।। प्रताप० पृ0 - 513 अ0र0, सू0 60 तथा वृत्ति, पृ0 - 105
अचि0, 4/212