________________
:: 163 ::
पर प्रथम प्रकार का मलित होता है और आगन्तुक वस्तु से सहज का मीलन होने पर द्वितीय प्रकार का मीलित होता है ।'
आचार्य रुय्यक एक वस्तु से दूसरी वस्तु के निगूहन मे मीलित अलकार को स्वीकार किया है 12
आचार्य जयदेव सादृश्य के कारण भेद के न लक्षित होने पर मीलित अलकार स्वीकार किया है ।
विद्याधर तथा विद्यानाथ की परिभाषा अजितसेन के समान है ।4
सामान्य.
आचार्य मम्मट के अनुसार जहाँ गुणगत साम्य प्रदर्शित करने की इच्छा से प्रस्तुत पदार्थ का अप्रस्तुत पदार्थ के साथ एकात्म सम्बन्ध प्रतिपादित किया जाए अर्थात् प्रस्तुत और अप्रस्तुत दोनों एक रूप होकर समान रूप से प्रतीत हों वहाँ सामान्य नामक अलकार होता है ।
परवर्ती आचार्य रूय्यक जयदेव विद्याधर विद्यानाथ विश्वनाथ अप्यय दीक्षित आदि की परिभाषाएँ मम्मट के समान है । आचार्य अजितसेन की परिभाषा सक्षिप्त होते हुए भी मम्मट द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त को निरूपित करने में समर्थ है क्योंकि इन्होंने 'वस्त्वन्तरेकरूपत्व सामान्यालकृति' का उल्लेख किया है जिससे स्पष्ट हो जाता है कि जहाँ दो पदार्थों में एक रूपता का प्रतिपादन किया जाए वहाँ सामान्य अलकार होता है । इसमे अव्यक्त गुण वाले प्रस्तुत और अप्रस्तुत मे गुणसादृश्य के कारण एकरूपता का वर्णन किया जाता है ।
अ०चि0, 4/177 वस्तुना वस्त्वन्तरनिगृहन मलितम् ।।,
अ0स0, सू0 71 चन्द्रा0 5/33 का एकावली 8/63 ख) प्रताप०, पृ0 - 496 प्रस्तुतस्य यदन्येन गुपसाम्यविवक्षया । एकात्म्यं बध्यते योगात्तत्सामान्यमितिस्मृतम् ।।
का0प्र0, 10/134 एक प्रस्तुतस्यान्येन गुणसाम्यादैकात्म्य सामान्यम् ।
অOষ00 72 ख/ चन्द्रा0, 5/34, ग एका0, 8/64, घ! प्रताप०, पृ0 - 498, एंड सा0द0, 10/89, 1च कुव0, 147 वस्त्वन्तरेकरूपत्व सामान्याल कृतियथा ।