________________
होता है । इसमे फलाभाव के कारण ही चमत्कार की सृष्टि होती है । कारण के रहने पर भी कार्य की अनुत्पत्ति का वर्णन करना तत्व है ।
इस अलकार का जीवनाधायक
विद्यानाथ, जयदेव, दीक्षित, विश्वनाथ एव पण्डितराजादि की परिभाषाएँ उद्भट से प्रभावित है 12
अगति
आचार्य रुद्रट के अनुसार जहाँ कारण तथा कार्य की स्थिति भिन्न स्थल पर समकाल मे हो वहाँ असगति अलकार होता है । 3 आचार्य मम्मट ने काल के अतिरिक्त देश (स्थान) को भी स्थान दिया है 14 जिसे परवर्ती काल मे आचार्य रूय्यक ने भी स्वीकार किया है 15 मम्मट, रुय्यक तथा शोभाकर मित्र की परिभाषा रुद्रट से प्रभावित है ।
आचार्य अजितसेन के अनुसार जहाँ एक स्थान मे रहने वाले कार्य कारण की पृथक् देश में स्थिति का वर्णन किया जाए वहाँ असगति अलकार होता है । इन्होंने रुद्रट की भाँति असंगति में कार्य तथा कारण के भिन्न देशत्व पर विशेष बल दिया है । आशय यह है कि असगति में कारण और कार्य भिन्न भिन्न आश्रयों में वर्णित होते हैं किन्तु लोक प्रसिद्ध सगति यही है कि जहाँ कारण रहता है कार्य भी वहीं उत्पन्न होता है । परन्तु यदि कवि लोकातिक्रान्त प्रतिभा द्वारा कारण और कार्य का स्थान भिन्न-भिन्न बताए, तो उसमे उत्पन्न काव्यवैचित्र्य ही असगति अलकार के रूप मे स्वीकार किया जाता है 16
1
-
2
3 4 5 6
विशेषोक्तिस्तु सामग्रयां सत्यां कार्यस्य नोद्भव ।।
(क) प्रतापरूद्रीयम् पृ० (ख) चन्द्रा0, 5 / 78
(ग) कुव0, 83
घ) सा0द0, 10/66 (ड) २०ग०, पृ0 589-90
रुद्रट काव्या0, 6/48
का०प्र०, 10/124
अ०स०, पृ० 164
·
- 509
कार्यकारणयोरेकदेशसंवर्तिनोरपि ।
भिन्नदेशस्थितिर्यत्र तत्रासगत्यलकृति ।।
-
TOP TO 4/204
अ० चि०, 4 / 206, पृ0 - 179