________________
:: 166 ::
आचार्य उद्भट की परिभाषा भामह अनुकृत है ।' दण्डी के अनुसार जहाँ विशेष दर्शन के लिए विरुद्ध पदार्थों के ससर्ग का दर्शन हो वहाँ विरोधाभास अलकार होता है ।2 रुद्रट की परिभाषा आचार्य दण्डी से ही प्रभावित है । आचार्य वामन ने विरुद्धाभास को विरोध अलकार के रूप में स्वीकार किया है । इससे विदित होता है कि इस अलकार मे वास्तविक विरोध न होकर केवल विरोध का आभास मात्र रहता है ।
__ आचार्य मम्मट के अनुसार जहाँ दो पदार्थों में विरोध होते हुए भी उसमे वास्तविक विरोध न हो, विरोध का आभास मात्र हो वहाँ विरोध नामक अलकार होता है । वास्तविक विरोध के अभाव में ही विरोधाभास अलकार होता है । यह विरोध जाति, मुण, क्रिया एव द्रव्य के साथ होता है । इसके निम्नलिखित भेद सभव है -
124 036
जाति का जाति, गुण, क्रिया एव द्रव्य से विरोध गुण का गुण क्रिया एव द्रव्य के साथ क्रिया का क्रिया एव द्रव्य के साथ द्रव्य का द्रव्य के साथ
आचार्य रुय्यक का कथन है यदि विरोध का समाधान न हो सके तो वहाँ 'प्ररूढ' दोष होता है । दोष के समाधान होने पर ही विरोधालंकार सभव है ।
or - wN -
काव्या० सा0स0, 5/6 काव्यादर्श, 2/333 रुद्रट - काव्या0, 9/30 काव्या0 सू०, 4/3/12 का0प्र0, 10/110 अ0स0, पृ0 - 154