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महाकवि अजितसेन ससकृत काव्य शास्त्र के उद्भट विद्वान रहे । इन्होंने ग्रन्थ के आदि मे भगवान 'शान्तिनाथ' को नमन किया है। और ग्रन्थ के अन्त मे इक्ष्वाकु वंश प्रसूत अत्यन्त बलशाली भुजा वाले बाहुबली को भी नमस्कार किया है 2 इससे विदित होता है कि जैन धर्म के प्रति इनकी अपार श्रद्धा तथा भक्ति थी । ग्रन्थारम्भ मे इन्होंने समन्तभद्रादि कवियों को भी नमस्कार किया है जिससे पूर्व कवियों के प्रति आदर भाव की प्रवृत्ति परिलक्षित होती है । उच्चकोटि के विद्वान होते हुए भी इनमे संग्रहात्मक प्रवृत्ति भी थी क्योंकि अलकार चिन्तामणि मे प्रदत्त उदाहरण प्राचीन पुराण-ग्रन्थ तथा सुभाषित ग्रन्थ और स्तोत्रों से लिए गये है ।
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आचार्य अजितसेन मे अहकार का सर्वथा अभाव था । इनके ग्रन्थ मे कहीं भी ऐसा उल्लेख नहीं प्राप्त होता जो इनके अहकार व गर्वोक्ति का सूचक हो । इन्होंने ग्रन्थ के अन्त मे अल्पज्ञता या प्रमाद से होने वाली त्रुटियों के सशोधनार्थ सुधी - जनों से आग्रह भी प्रकट किया है।
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श्रीमते सर्वविज्ञानसाम्राज्यपदशालिने । धर्मचक्रेशिने सिद्धशान्तयेऽस्तु नमो नम 11 जगत्प्रपूज्य विन्ध्याग्रे इक्ष्वाकुवरवशजम् । सुरासुरादिवन्याऽघ्रि दोर्बलीश नमाम्यहम् ।। श्रीमत्समन्तभद्रादिकविकुञ्जरसचयम् । मुनिवन्द्य जनानन्द नमामि वचनश्रियै ।।
अत्रोदाहरण पूर्वपुराणादिसुभाषितम् ।
पुण्यपूरुषसस्तोत्रपर स्तोत्रमिद तत 11
अ०चि०- 1/10
अ०च० पृ०-335
अ०चि०
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अ०चि० - 1/5