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विचार करके विषय वस्तु का यहाँ वर्णन की दिशा मात्र का चरम सीमा न समझनी चाहिए ।
है
कवि समय की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है । महाकवि कालिदास ने अपनी रचनाओं मे इसका अधिक उपयोग किया है । भामह, उद्भट, दण्डी आदि आलकारिक आचार्यो। ने इस विषय पर विवेचन नहीं किया है, प्रत्यतु लोक और शास्त्रविरुद्ध विषयों के वर्णन को काव्यदोष माना है । राजशेखर ने इस विषय पर सर्वप्रथम और विस्तृत विमर्श किया है तथा इसे एक व्यवस्थित रूप दे दिया है । इसका कारण यह प्रतीत होता है कि कुछ लोगों ने कवि समय के नाम पर मनमानी प्रारम्भ कर दी थी । अत उसकी विवेचना भी आवश्यक हो गयी थी । वामन ने 'कविशिक्षा2 नामक प्रकरण में इस विषय की चर्चा की है ।
आचार्य राजशेखर ने कवि समय को तीन भागों में विभाजित किया
चित्रण करे । तो विषय समर्चनीय होगा क्योंकि ही प्रदर्शन किया गया है इसे वर्ण्य विषयों की
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कवि समय के भेद
1 स्वर्ग, 2 भौम, 3 पातालीय । जिनमे 'भौम' कवि समय को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है । भौम कवि समय का क्षेत्र विस्तृत होने के कारण इसे चार भागों में विभाजित किया गया है
। जाति रूप, 2 द्रव्य रूप 3 गुणरूप तथा 4 क्रियारूप |
वर्ण्यदिड् मात्रता प्रोक्ता यथालड् कारतन्त्रकम् । वर्णनाकुशलैश्चिन्त्यमनेकविधमस्ति तत् ।।
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'काव्यालकारसूत्र' पञ्चम अधिकरण, अध्याय -
अचि० 1/67
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पाच, सूत्र 1-17