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आचार्य अजित सेन ने चित्र, वक्रोक्ति, अनुप्रास तथा यमक भेद से चार प्रकार के शब्दालकारों को ही स्वीकार किया है पूर्व अध्याय मे चित्र काव्य का निरूपण सविस्तार किया गया है ।
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अपेक्षित है ।
वक्रोक्ति अलकार:
संस्कृत साहित्य मे वक्रोक्ति पद का उल्लेख दो अर्थो मे होता है । एक अर्थ तो केवल अलकार मात्र का सूचक है और दूसरा अलकार विशेष का ।
आचार्य भामह के अनुसार अतिशयोक्ति ही समग्र वक्रोक्ति अलकार प्रपच है । इससे अर्थ मे रमणीयता आती है । कवि को इसके लिए प्रयास करना चाहि इए क्योंकि उसके बिना कोई अलकार सभव नहीं है ? आशय यह है कि वक्रोक्ति अलकार के अभाव मे इन्हें अलकारत्व अभीष्ट नहीं है, सम्भवत इसीलिए इन्होंने हेतु, सूक्ष्म व लेश को अलकार नहीं माना है | 2
आचार्य दण्डी के अनुसार श्लेष प्राय सभी वक्रोक्तियों का शोभाधायक है । इनके अनुसार सम्पूर्ण वाड्मय स्वभावोक्ति एव वक्रोक्ति के रूप में विभक्त है । 3
प्रस्तुत अध्याय मे वक्रोक्ति, अनुप्रास तथा यमक का निरूपण करना
आचार्य वामन ने इसे अलकार के रूप मे स्वीकार करते हुए सादृश्य लक्षणा को ही वक्रोक्ति बताया है किन्तु इसे गौणी लक्षणा के रूप मे स्वीकार करना ही उचित प्रतीत होता है । 4
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अलकार चिन्तामणि
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भा0का0ल0 2/84, 85, 86
श्लेष सर्वासु पुष्णाति प्राय वक्रोक्ति श्रियम् । भिन्न द्विधा स्वभावोक्तिर्वक्रोक्तिश्चेतिवाङ्मयम् ।।
सादृश्यलक्षणा वक्रोक्ति ।
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काल०सू०
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