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श्रृंखलान्याय
सार ।
मिश्र अलकार -
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मूलक :
सृष्टि, सर ।
आचार्य अजितसेन ने अलकारों की परिगणन सूची मे 'सम' अलंकार का उल्लेख नहीं किया है किन्तु अलकारों के वर्गीकरण के प्रसंग मे इसे विरोध मूलक अलकार वर्ग के अन्तर्गत रखा है । आचार्य रुय्यक ने भी इसे विरोध मूलक अलकारों के मध्य परिगणित किया है । ।
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अजितसेन के पश्चात् आचार्य विद्यानाथ ने अलकारों के वर्गीकरण पर गम्भीरता से विचार व्यक्त किया है । इनके वर्गीकरण पर आचार्य अजितसेन का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है इन्होंने अजितसेन की भाति प्रथमत अलंकारों को चार भागों मे विभाजित किया है 2
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प्रतीयमान वस्तु मूलक अलकार उपमेयोपमा, अनन्वय, अतिशयोक्ति, विशेशोक्ति ।
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प्रतीयमान वस्तु मूलक
प्रतीयमान औपम्य मूलक
प्रतीयमान रसभावादि मूलक अस्फुट प्रतीयमान
कारणमाला, एकावली,
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मालादीपक तथा
प्रतीयमान औपम्य मूलक अलंकार - रूपक, परिणाम, सन्देह, भ्रान्तिमान, उल्लेख, अपह्नुति, उत्प्रेक्षा, स्मरण, तुल्ययोगिता, दीपक, प्रतिवस्तूपमा, दृष्टान्त, सहोक्ति, व्यतिरेक, निदर्शना और श्लेष ।
पर्याप्योक्ति, आक्षेप, व्याजश्रुति,
समासोक्ति, परिकर, अप्रस्तुत प्रशसा, अनुक्तनिमित्ता
विरोधगर्भतया विरोधविभावनाविशेषोक्त्यतिशयोक्त्यन्तरासंगतिविषमसमविचित्राधि यविशेषव्याघातद्वयानि ।
अलंकार सर्वस्व सञ्जीवनी टीका पृ० - 377
अर्थालकाराण्यं चातुर्विध्यम् । केचित् प्रतीयमानस्तव । केचित् प्रतीयमानौपम्य । केचित् प्रतीयमानरसभावादय । केचिदस्फुट प्रतीयमाना इति ।
प्रतापरुद्रीय
रत्नापण टीका, पृ0 - 399
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