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इसके अतिरिक्त 'कारयित्री' तथा 'भावयित्री' रूप से प्रतिभा के दो भेदों का उल्लेख भी किया है । कारयित्री प्रतिभा कवि के लिए उपकारक होती है और भावयित्री भावक या काव्यालोचक के लिए हितकारिणी है । कारयित्री प्रतिभा को भी इन्होंने 'सहजा' आहार्या और औपदेशिकी . तीन रूपों में विभाजित किया है । पूर्वजन्म के सस्कारों से प्राप्त जन्मजात प्रतिभा-सहजा, जन्म और शास्त्रों एव काव्यों के अभ्यास से उत्पन्न प्रतिभा आहार्या तथा मन्त्र, तन्त्र, देवता, गुरू आदि के वरदान या उपदेश से प्राप्त प्रतिभा औपदेशिक कही जाती है ।'
उक्त विवेचन से विदित होता है कि आचार्य राजशेखर केवल प्रतिभा को काव्य कारण के रूप मे स्वीकार करते है । 'कवि' कविऔरभावक' - दोनों को कवि ही मानते है ।2
पण्डितराज जगन्नाथ भी आचार्य राजशेखर की भाँति केवल प्रतिभा को ही काव्य का हेतु स्वीकार किया है ।
आचार्य मम्मट दण्डी की भाँति शक्ति प्रतिभा निपुणता तथा अभ्यासइन तीनों को सम्मिलित रूप से काव्य - कारण के रूप मे स्वीकार किया है ।4
आचार्य अजित सेन कृत परिभाषा भामह-दण्डी- वामन, मम्मट तथा राजशेखर कृत परभाषा से भिन्न है । इन्होंने काव्य हेतु के निरूपण मे एक नया विचार व्यक्त किया है । इनके अनुसार व्युत्पत्ति, प्रज्ञा तथा प्रतिभा - ये
स च द्विधा कारयित्री भावयित्री च । कवरूपकुर्वाणा कारयित्री । साऽपि त्रिविधा सहजाऽऽहायोपदेशिकी च ।
एकाव्यमीमासा - अध्याय-4 भावकश्चकवि इत्याचार्या
वही अध्याय-4, पृ0-32 तस्य कारण केवला कविगता प्रतिभा । रसगगाधर - अनान - प्रथम,
पृ0 - 9 शक्तिर्निपुणता लोकशास्त्रकाव्याद्यवेक्षणात् । काव्यज्ञशिक्षयाभ्यास इति हेतुस्तदुद्भवे ।।
का0प्र0 - 1/30