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उच्चारण व्यवस्था,' तथा उत्सर्ग विच्छेद की व्यवस्था का प्रतिपादन करने के पश्चात् यति माधुर्य की व्यवस्था तथा यति माधुर्य को प्रतिपादित किया है । 4
अजितसेन के पूर्ववर्ती भामह, दण्डी, रुद्रट तथा मम्मट आदि किसी भी आचार्य ने अभ्यास स्वरूप का निरूपण इतने विस्तार से नहीं किया जितना कि अजित सेन ने किया है ।
इन्होंने योग्य कवि मे प्रतिभा, वर्णन, क्षमता तथा अभ्यास - तीनों का होना आवश्यक बतलाया है ।
आचार्य अजितसेन तक काव्य हेतु के सम्बन्ध मे विद्वानों की मान्यताए दृष्टिगोचर होती है -
रुद्रट तथा मम्मट ने प्रतिभा, व्युत्पत्ति तथा अभ्यास तीनों को सम्मिलित रूप से काव्य के हेतु के रूप मे स्वीकार किया ।
वही - 1/18, 19
वही - 1/21
का धातूनामविभक्तीना क्वचिद्भेदे यतिच्युति ।
मुक्ताक्षरपरत्वेऽपि श्लथोच्चार्या क्वचिद्यथा ।। ख) जिनेशपदयुग वन्दे भक्तिभरसन्नत ।
समस्ताधविनाश स्वामिन धर्मोपदेशिनम् ।। विकस्वरोपसर्गेण विच्छेद श्रुतिसौरव्यकृत् । यथाऽहत्पदयुग्म प्रणमामि सुरपूजितम् ।। पद यथा यथा तोष सुधियामुपजायते । तथा तथा सुमाधुर्यनिमित्त यतिरुच्यते ।। भारती मधुराऽल्पार्थसहिताऽपि मनोहरा । तमस्समूहसकाशा पिकीव मधुरध्वनि ।। प्रतिभोज्जीवनो नानावर्णनानिपुण कृती । नानाभ्यास कुशाग्रीयमतियुत्पत्तिमानकवि ।।
वही - 1/22
वही - 1/12
अचि0 - 1/8