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लक्ष्यज्ञत्व, अभियोग, वृद्धसेवा - अवेक्षण - प्रतिभान तथा अवधान को प्रकीर्ण के रूप में मान्यता दी है ।'
काव्यानुशीलन से ही कवियों को काव्य निर्माण की व्युत्पत्ति होती है । अत कवियों के लिए वामन के अनुसार उक्त सभी तत्वों का होना आवश्यक बताया गया है ।
आचार्य रुद्रट ने शक्ति के सम्बन्ध मे बताया कि जिसके द्वारा सुस्थिर चित्त मे अनेक प्रकार के वाक्यार्थ का स्फुरण हो तथा काव्य - रचना के समय तत्काल अनेक शब्द व अर्थ हृदयस्थ हो जाए उसे शक्ति कहते है ।2 शक्ति ही काव्य - रचना का बीजभूत सस्कार सस्कार है । शक्ति के पर्याय के रूप मे कतिपय विद्वानों ने प्रतिभा का भी उल्लेख किया है । यह प्रतिभा कवि को जन्म के साथ ही प्राप्त होती है अथवा पूर्व पूण्य के प्रभाव से किसी देवता के प्रसाद द्वारा जन्म के बाद भी प्राप्त होती है । आचार्य रुद्रट ने इसे 'सहजा' व 'उत्पाद्या' दो रूपों मे स्वीकार किया है । जिसमे 'सहजा' को अधिक महत्त्व दिया है ।
आचार्य राजशेखर प्रतिभा को ही मुख्य रूप से काव्य का हेतु स्वीकार करते है समाधि और अभ्यास शक्ति को उद्भासित करते है ।
लोको विद्या प्रकीर्णश्च काव्यागनि । काव्यालकारसूत्रवृत्ति - 1/3/1 लोकवृत्त लोक । वहीं - 1/3/2 शब्दस्मृत्यभिधानकोशाच्छन्दोविचितिकलाकामशास्त्रदण्डनीतिपूर्वा विद्या ।
वही - 1/3/3 लक्ष्यज्ञत्वमभियोगो वृद्धसेवाऽवेक्षण प्रतिभानमवधान च प्रकीर्णम् ।
वही - 1/3/11 मनसि सदा सुसुमानिधि विस्फुरणमनेकधा विधे यस्य । अक्लिष्टानि पदानि च विभान्ति यस्यामसौ शक्ति । काव्यालकार-1/156 शक्ति कवित्वबीजरूप सस्कारविशेष । का0प्र0 - 1/3 वृत्ति काव्यालकार - रुद्रट - 1/16 अविच्छेदेन शीलनमभ्यास । स हि सर्वगामी सर्वत्र निरतिशय कौशलमाछत्ते । समाधिरान्तर प्रयत्नो बाह्यस्त्वभ्यास । तावुभावापि शक्तिमुद्भासयत । 'सा केवल हेतु ' इति यायावरीय ।
काव्यमीमासा - अध्याय - 4, पृ0-270