Book Title: Agamsaddakoso Part 3
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 202
________________ (सुत्तंकसहिओ) पयोधर [ पयोधर] स्तन, वाहणा जीवा. १८५; पयोयण [प्रयोजन] रए, व्यापार भग.. ५१६,५३१,६५५; पयोहर [पयोधर ] स्तन, वाहणा पण्हा. ४३; जंबू. ३४; पर [पर] अन्य, जी, पोता सिवायनुं शत्रु, वधारे, परसोड, भोक्ष, उत्कृष्ट, तत्पर, सावधान, खेड જાતનું ઘાસ, પ્રકર્ષપ્રાપ્ત आया. ४,८२,८५,१३६, १३७,२०८.२१०, २११, २१८, २१९,२२३,२२९, २८३, ३१२,३३५,३४६, ३४७,३६३, ३६७, ३७५,३८४,३८८ थी ३९०,३९२, ३९३, ३९६,४२३,४३४, ४३५, ४५२ थी ४५५, ४५७ थी ४५९, ४७६, ४८०, ४८३ थी ४८६, ४८८,४९०,४९१,५०१.५०६,५४७; सूय. १२,४४,५०,५२, ११२, १५७, १७६, ३२३, ३७९, ३९०,४०५, ४०९, ४३४, ४५६, ४६५,५५३,५६६, ५७६, ६३२,६४१ थी ६४४,६४७,६५७ थी ६५९, ६६५, ६६७, ६७०, ६७१,७८६, ७८७, ७९४, ७९७,८०३; ठा. ८२, १०७, २०१, २६३, २६९,३०८, ३३४,३४२,३४७, ३६६, ४५३, ४५४, ४९७; सम. ९१,१७०; भग. ७१,८४,९८, १८५, १८६, १८९,२२०, ३०७,३५८,४२७, ४५९, ४६५, ४६७ थी ४६९, ४८२,५१८,५३६, ५६२,५७९,५८०, ६५३,६६४,७०३, ७०६, ७०७,७३५, ७३८, ८०४,८९१,९१५, ९४७,९७०, १००३, १००४, १००७, १०१५,१०१६.१०६८: नाया. १५,३३,३७,४५,६१,६६, १४४; उवा. ५५; पण्हा. ७,९,११. १२,१५,१६,२०,३६ थी ३८,४५, उव. ५०,५१: पन्न. १७९,२३४, विवा. २७: राय. ८४ : २६०,३३६,४१४,५२५.५३९: सूर. २४,३७,१०९: Jain Education International चंद. २८,४१,११३; महाप. ६९; निसी. ८६, १०८,१०९, १३२, १९६, ३१२, ३८७,५९९ थी ६०७,७१९,७२१,७२३, ७५२,७७७, १३३७, १३४१, १३४२,१३८८ थी १४२०; बुह. ३४,७१,७२; वव. २० थी २२,१०५ श्री १०८, १३९.१४०; दसा. ३५,८१ ; दस. ७९, २३६,२३९,२६२,३०६,३३३, ३४७,३५०, ३९८,४१२, ४१९, ४४४, ४७६,४९२,५०२,५०४,५३५, ५३७; उत्त. १६, २५, ५९, ६९, ७३,७९,९३,११९, १३३,१३४,३५९,३६८, ३९०,४२७, ४३०, ५०५, ५०६, ५७६, ५८६,५८८, ६३३.६३५, ७४७,७६१,७८२, ९५२,९७०, ९७४, ९७७, ९९६, १०००,१०११, १०४१, १०९४, ११४६, ११७४, १२७५, १२८८, १३०१, १३१४, १३२७, १३४०, १४२६, १४२९, १५१५, १५२२,१५२३, १७२६; अनुओ. ३२२; पर / भ्रम् ] भए। २ पण्हा. १५; परइड्डि [परर्द्धि] जीमनी ऋद्धि सम. ३३८: परं [ परम् ] परंतु, उपरांत, जेवण, इत सूय. ९६,१०७, २०९, ३४३, ३७५, ३८४; ठा. १५३: भग. ४६५; नाया. १२४, १४५ : जीवा. २७७ : निसी. ४२: ૨૦૧ पन्न. ३९८; बुह. ४७; वव. ५: दसा. ४९; नंदी. ७६: अनुओ. २७९ : परंगणय [ पर्यङ्गत् ] पराथी यास पुप्फि. ८: परंगामण [ पर्यङ्गन] पगधी यास ते भग. ५२१; राय. ८३: परंगिजमाण [ पर्यङ्गत् ] पराथी यासतो नाया. २५: For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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