Book Title: Agamsaddakoso Part 3
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 417
________________ ૪૧૬ आगमसद्दकोसो भिक्खंतर [भिक्षान्तर अन्य भिक्षा ठा. २५७,३७६,३७८,४९१,७०२; ओह. २२०; भिक्खागकुल [भिक्षाककुल मिक्षा भिक्खण [भैक्षक] भिक्षु दसा. १११; विवा ३१; भिक्खाचरण [भिक्षाचरण] भिक्षा माटे ३२ भिक्खग्गाम [भिक्षनाम मिासमुह गणि. ३२: ओह. २८६; भिक्खाद [भिक्षाद] मिal-Edu भिक्खग्गाही भिक्षाग्राहिन मिक्षा ४२नार, __सम. ३६५; સાધુ भिक्खादय [भिक्षादय] भिमानार पिंड. ३१०; सम. २८९; भिक्खचरिया [भिक्षाचर्या मिक्षा भाटे ३२ ते, || भिक्खाय [भिक्षाद/ भिEdi, भिक्षाथी निवाई ભિક્ષાવૃત્તિ કરનાર पण्हा. ३५; उत्त. १५०,१५६; भिक्खट्ट [भिक्षार्थी मिक्षा भाटे भिक्खायरि [भिक्षाचरिन्] भिक्षा माटे ३२नार, ओह. १३७; पिंड. २४३; ગૌચરી भिक्खमाण [भिक्षमाण भिक्षातो ओह. २२२; पिंड. ४४८; उत्त. ४६७; भिक्खायरिय [भिक्षाचरिक] भिक्षा माटे ३२नार भिक्खलाभिय [भिक्षालाभिकामनारपूर्व तुच्छ || ओह. ६५१; વસ્તુ મળેતે લેવી એવો અભિગ્રહધારી ગવેસણા भिक्खायरिया [भिक्षाचर्या) मिक्षा मटे इत, કરનાર સાધુ ગૌચરી કરવી તે सूय. ६७० उव. १९; आया. २२९,३५८; सूय. ६४५,६६४; भिक्खवत्ति [भैक्षति लिक्षा-वृत्ति ठा. ५६२, भग. १३४.१६०,१७२, उत्त. १४५८; ३७७,५०८,५२८,६३८,६३२,६४५.९६५3; भिक्खवेला [भिक्षावेलागोयरीनोसमय नाया. १५१,१५९,१६५.२१८; ओह. २९२ उवा. १७: अंत. १३,२७,३९ भिक्खा भिक्षा भिक्षा, गौरी अनुत्त. १०, विवा १२ सूय. ७४७: उव. १९: पुष्फि . ८; ठा. ५९६,७८२,८४७,९९३; निसी. ९७; बुह. ७; सम. १२७,१४२,१६०,१७९,२९४: आव. १८; उत्त. ४९,४७०,४७४, नाया. ३४,६५,१४९,१५२; ४७६.६४६,१०१८,११९६: अंत. ३९,५४; पण्हा . ३४; भिक्खियव्य [भिक्षितव्य भिक्षा योग्य वव. २३७ थी २४०, दसा. ४७; उत्त. १४५८: पिंड. २१७; दस. ७६,१४४, भिक्खु [भिक्षु भिक्षु, साधु उत्त. २१९,३६२,३६८,४५८,९६६,९६८, आया. ९०.१६९,१९८,२००.२०७,२१५, १०६८; अनुओ. ३०७: २१६,२२२ थी २२४,२२८,२२९,२३३ थी भिक्खाग[भिक्षाक] भिक्षु, साधु २३९,२४२.२९९,३३५ थी ३८९,३९२ थी आया. ३५८,३९४,३९५; ४११,४२० थी ४३६,४४६ थी ४५३, ४५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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