Book Title: Agamsaddakoso Part 3
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 447
________________ ४४६ आगमसद्दकोसो ठा. १३७,१५७,३७६,४९१,८१०ः सम. १३: भग.१७२,३६०,५४६,६५८,१००३; नाया. ३३,६२,१६०,१९४; पण्हा. १५,१९; विवा. १०,३२; उव. ५,२१,३१, राय. १५,३२, जीवा. १००,१०५,१६५,१८५,३०३; पन्न. १५७,३३६; सूर. १९५; जंबू. ३४,४९,१२१,१२८,१२९; आउ. ५२; महाप. ५४; दसा. १०१; दस. ५०६, उत्त. ४७६,६७८,१३०९,१६३६; मच्छंडक [मत्स्याण्डक] माछीन। जीवा. १६४; मच्छंडग [मत्स्याण्डका छुमो 6५२' राय. २४: जंबू. २२८; मच्छंडापविभत्ति [मत्स्याण्डकप्रविभक्ति] मे દેવતાઈનાટ્યવિશેષ राय. २४; मच्छंडिका [मत्स्यण्डिका] Mis, A७२ पण्हा. ४३; मच्छंडिया [मत्स्यण्डिका मो ७५२' नाया. १८५; पण्हा. ४५; जीवा. १८५,२९३; पन्न. ४६५; जंबू. ३५: निसी. ४६९,५७८; अनुओ. २५३ मच्छंडी [मत्स्यण्डी]gो '७५२' जीवा. १८५: पिंड. २८३; अनुओ. ७५: मच्छंत [मथ्यमान] भन्थन उरतो पण्हा. १६: मच्छंध [मत्स्यबन्ध] भा७५४उना२ विवा. ३२ मच्छंधुल [दे. मत्स्य 6५४२९॥ विवा. ३२; मच्छखल [मत्स्यखला भासावानुस्थान आया. ३५६; निसी. ५०८: मच्छखलय [मत्स्यखलक] ५२' विवा. ३२ मच्छखाय [मत्स्यखाद] भाछापानार निसी. ५८९; मच्छग [मत्स्यक माछएं आया. ३९२, जीवा. ४३; मच्छत्त [मत्स्यत्वाभासा५ विवा. २६,३०,३२; मच्छबंध [मत्स्यबन्ध] माछा 453नार ठा. ६२१; पण्हा . ८; मच्छबंधिय [मत्स्यबन्धिक] -6५२' विवा. २६; मच्छर [मत्सर] द्वेष, महेपाई नाया. १४२; ओह. ५९५; मच्छरि [मत्सरिन्] व्या पहा. ११; उत्त. १४०८: मच्छरित्त [मत्सरित्व] ४५j पण्हा. ३८; मच्छरियया मात्सर्य] ध्यानोभाव उवा. ९: मच्छादिय [मत्स्याचितठेमा भा७८॥ भुण्य होय आया. ३५६; मच्छादीय [मत्स्यादिको ७५२' निसी. ७३४; मच्छाहार [मत्स्याहार भ७८ीनो मार जंबू. ४९; मच्छिय [मात्स्यिका भ२छीमार सूय. ६६३; पण्हा. ११: विवा. ३०,३२; पिंड. ६३१: । मच्छिय [मक्षिका] भाषी, मधमानी पन्न. १५२; मच्छियपत्त [मक्षिकापत्रमाणीनी उव. ५५: पन्न.२३५ देविं. २७७; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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