Book Title: Agamsaddakoso Part 3
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 456
________________ (सुत्तंकसहिओ) ૪૫૫ विवा. १०; मणुण्णया [मनोज्ञता] २भएयता उत्त. १३५२; मणुण्णस्सरता [मनोज्ञस्वरता] सुं२ मनगमत | સ્વરપણું पन्न. ५३९; मणुय [मनुज मनुष्य आया. ५३२,५३५; सूय. ९८,३५१; ठा. ४१,८९,१५१,२८१,५३६,७८३, सम. ४५,१८५; भग. २८६,३६० नाया. ३३,९८; उवा. ४२,४६, अंत. १३; पहा. ११,१७,२३, उव. २०,४४,५१; राय. ४२; जीवा. ३४,१०० पन्न. ३३६,५०६ जंबू. १२,३४; निर. ६ पुष्फि . ८; वण्हि . ३; महाप. ४७; तंदु. ६४; दसा. १०१ आव. २६; दस. ३२; नंदी. ६९ मणुयत्त [मनुजत्वा मनुष्य भत्त. १०५; मणुयलोग मनुजलोक मनुष्यतो देविं. १२६ थी १२८,१३३; . मणुयलोय [मनुजलोका मनुष्यलाई देविं. १२९; मणुस्स [मनुष्य] भास देविं. १३९ मणूस [मनुष्य भएस महाप. ३० मण्ण /मान्य मान्य नाया. ७५: अंत. १३; मण्ण [मन्] nig, भान आया. ४९८: भग. ३७७,६४९: नाया. १२,९२: पन्न. ३७५; मण्णंत [मन्यमानते सूय. ५२१; मण्णमाण मन्यमान] तो आया. ६७,३३५; सूय. ५७,५८१; उत्त. १२२; मण्णा [मन्या मानाने सूय. ६४५,६६५; भग. १९; मत [मत] मानेगु, सिद्धांत सूय. ५३४,६२९; भग. ४५; मतंगय [मदाङ्गकामधुर सहेना२३८५वृक्षनी જાતિ ठा. ६५५,९८७; मति [मति भो ‘दइ' आया. १०० ठा. २००,३८३; भग. ३७२,५१८; नाया. १३४; पण्हा. १९,२४; जीवा. १०५; पन्न. ४०७; जंबू. ५४; दसा. ३५: मतिअन्नाण [मत्यज्ञान]ो . 'मइअन्नाण' भग.७०१; पन्न. ३०९ थी ३११ मतिअन्नाणपरिणाम [मत्यज्ञानपरिणाम] ४ो 'मइअन्नाणपरिणाम' पन्न. ४०७; मतिअन्नाणि/मत्यज्ञानिनामो. 'मइअनाणि' ठा. ७८३: भग. ७६१: जीवा. ४४,३९०ः पन्न. २७२,३१८; मतिनाण [मतिज्ञान हुमो ‘मइनाण' पन्न.५७२, मतिभंग [मतिभङ्ग] विस्मृति होष ठा. ९४७; मतिम मितिमत्] पुद्धिमान् आया. १००,२१९; पण्हा. ३५.३७; मतिसंपया [मतिसम्पदा भति३५संपत्ति दसा. ५,११: मतिसंपया /मतिसम्पदा] हुमो ७५२' ठा. ७०६: मतीम [मतिमत्] बुद्धिमान सूय. ४९३; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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