Book Title: Agamsaddakoso Part 3
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan
View full book text
________________
૪૫૮
आगमसद्दकोसो
भग.३९,११२,१७६.२२९,२७४,३८६, | ४६०,५०६.५३२,५७५,६३९,६७५, |
७४३,७६१,७८०,९६५: । नाया. ५,६०.६४,८७,११२,१५०,१६४,
१८४,१९५,२०१,२१५; उवा. ८,२३,५४: अंत. १३,२०, पण्हा. ९,१५,१९,३४,३७,३८,४३; विवा. १३,१६,२३,२५,३३; उव. १५,१९, राय. १५,२८; जीवा. १६३,१६४,१६७,१७५,१९०; पन्न. ५२५,५३९,५८५,५९२; सूर. १९७;
जंबू. ४३,५५,८१; निर.७;
पुष्फि. ८; चउ. ५४;
आउ. २० संथा. २९;
निसी. ५७१ दसा. ११२
आव. २,१०,११: दस. १,९,३३ थी ३९,६४ थी ६९ . उत्त. ४३,६०,१२६,१७२,२१८; नंदी. ३१,८४: अनुओ. २८,३३५; मन [मन्] j, मानj
सूय. १५८,१६५,६०७,६५९;
ठा. ३४७,३६६: विवा. ३१; मनअसंजम [मनःअसंयम] मनन विषयमा
અસંયમ
सम. ४२: मनगुत्त [मनोगुप्त] ५५थी गुल मनवाजो
सूय. ६६१,६७०ः नाया. ३८,६५: अनुत्त. १०:
पण्हा . ४५; विवा. १०
उव. १७; राय. ८४:
जंबू. ४४: पुप्फि . ८:
महाप. ६७; दसा. १७; उत्त.
३६२,८४४,११६६: मनगुत्तया [मनोगुप्तता] मनने पहिथी
ગોપવવું તે उत्त. १११३,११६६:
मनगुत्ति [मनोगुप्ति] भनने सशुल्म विषयमा न પ્રવર્તાવવું તે, મનોનિગ્રહ ठा. १३४:
सम. ३,८,५५; भग. ७८२:
आव. २२; उत्त. ९३७,९५५: मनगुलिया [मनोगुलिकायोतरी, मोटो
जीवा. १७७,१७९: मनजीविक [मनोजीविका भननेमात्मा माननार
पण्हा. ११; मनजोग [मनोयोग] मनोव्यापार ठा. १३२; भग. ९६,५४३,५७५,
६६५,६९७,७७०,७८३,८६५; उव. १९,५४; पन्न. ६१९ थी ६२१:
भत्त. १३१; उत्त. ११८६; मनजोगत [मनोयोगत्वा मनोयोग५j
भग. ७०४,८६९; मनजोगपरिणाम [मनोयोगपरिणाम] मनोव्याપારજન્ય પરિણામ पन्न. १०९; मनजोगि [मनोयोगिन् भनना व्यापारवागो ठा. ३९६: भग. ६४,२८४,३९६.
४४७,५०५,५६४,७२२,७६१ जीवा. १४,१०४,१३१,३३२,३८४; पत्र. २६७,४०७,४७७,५६७; मनजोय [मनोयोग हुमो ‘मनजोग'
भग. ६६५,६९७: मनदंड [मनोदण्डभननादृष्टवियारोथी मात्भाने કર્મ વડે દંડવો તે सम. ३:
आव. २३: मनदुप्पणिहाण [मनोदुष्प्रणिधान] भननी दुष्ट ચિંતવના, દુષ્ટધ્યાન
उवा. ९; मननाण [मनोज्ञान] मनःपर्यवशान
उत्त. १०७९,१३६१; मनपज्जत्ति [मनःपर्याप्ति माननी पूरता पन्न. ५७१:
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546