Book Title: Agamsaddakoso Part 3
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 474
________________ (सुत्तंकसहिओ) ४७३ अंत. १३,२०,२७; पण्हा. १९; विवा. २२,२३ः उव. ११,२८; राय. ४२,५२,५४,५६,५८,६२; जीवा. १७९; सूर. १९७; जंबू. ७७,१२२,१२५,२३९; निर. ७,१०; पुष्फि . ५,८; पुप्फ. ३ चउ. ४८; दस. ३३९; महच्च [महार्चीसारी शतपू४वायोग्य ठा. १४३: भग. १३३,५०८; नाया. ६७: अंत. १३,२०; राय. ५४,५९,६२,७२,८०; महजुइ [महाद्युति/भोट sinिuj जंबू. १३,८४,९०,१६६,२२७; निर. १०; महइतराय [महाद्युतितरका मतिभोट तिवाणु भग. ३६६, राय. ७४; महजुइय [महाद्युतिक मोटीsildarj सूय. ६८७: ठा. ८६,४२८; भग. ८२.३६६,६७६; नाया. २१,१४५; उव. २२,५२; राय. ३३,७४; जीवा. १०५; पन्न. २२६: दसा. १०२,१०३; महज्जुइयतर [महाद्युतितरक]ी मोटीsiतिवाणु भग. ५६९; महज्जुईय [महाद्युतिक] भोट तिवाणु भग. १७१: राय. ४६: महतियतर [महाद्युतिकतर] भोटी.siतिauj भग. ५६९: महजुतीय [महाद्युतिक]मोटी तिवाणु भग. १२३,१५२; जीवा. ९०,१७२: पन्न. २०३,२१७: महज्झयण [महाध्ययन मोटुं अध्ययन ठा. ५१६: महड्डिय [महर्द्धिक भोटी*द्धिवाणु सूय. ६७०,६७१; पन्न. २२१; उत्त. १५३; महड्डीय [महर्द्धिक] मो ९५२ जंबू. १६९; महण [मथन मथन ३२नार सम. ३२७; पण्हा. १९,४५ विवा. ३२; जीवा. १८५; जंबू. १२४; महण्णव [महार्णवा समुद्र ठा. ४५०; निसी. ७८८; बुह. १३७; उत्त. ६२४,१३५१; महत [महत्] भोटुं, महान् सूर. १२६; चंद. १३०; महता [महत्] हुमो 6५२ जीवा. १६७,१६९; दसा. १०३; महति [महती] शततंत्री वीgu, मोटी ठा. ८६,९७,२१९,३२५,४२८,४८९; भग.३०१,४६२,४६३,५५०,५५१,५६४, ५६९,६८३; अंत. १३,२०, उव. ३४.४१: राय. १६,१७,२०,५४,५९.७८; जीवा. ८२,१०५,३४१: जंबू. ६८; दसा. १०१.१०३; महती [महती ठुमो 6५२ जीवा. १८५; निसी. १२४५; महत्तर [महत्ता]asle, गुरुन, अंत:पुर २६ भग. ५६९; अंत. १३: उव. ३३ः दसा. १०० महत्तरग [महत्तरक] अंतःपुरनोमाधियारी भग. ४६०,४६१,५३५; निर. ७; दसा. ९५,९६; महत्तरगत्त [महत्तरकत्वा भोट15, वडीauj भग. ५०६; नाया.३३,३७,५७,६३,२०९: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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